दरअसल काम करता आदमी प्रार्धनारत् होता है और प्रार्थनारत् आदमी किसे अच्छा नहीं लगता! (* अब तो टाइपराइटर की जगह कम्प्यूटर आ गए हैं) आशा करता हूँ-टिप्पणी में मेरे द्वारा अपनी कविता को ठूँसना आपको और अन्य पाठकों को अन्यथा नहीं लगेगा।
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दूसरा कान बंद करनेवाली बात को, मुझे याद है, उन्होंने इतने लंबे और प्रभावपूर्ण ढंग से वर्णित किया था कि मुझ समेत कई औरों ने उनकी इसी बात को दिमाग से न निकल देने के लिए, एक उँगली को कान में ठूँसना शुरू कर दिया था।