१ ९ ६ २ में विश्व का सबसे बड़ा साक्षात्कार समय और हम डिमाई आकार में ६ ४ ८ पृष्ठों में प्रकाशित हुआ जो वीरेन्द्र कुमार मिश्र ने श्री जैनेन्द्र कुमार से लिया था।
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बड़े जतन से संजोई किताबें हार्ड बाउंड किताबें पेपरबैक किताबें डिमाई और क्राउन साइज़ किताबे मोटी किताबें, पतली किताबें क्रम से रखी नामी पत्रिकाओं के अंक घर में उपेक्षित हो रही हैं अब...
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इनके अतिरिक्त हस्तलिखित, फोटो स्टेट की हुई, पोस्ट कार्ड पर निकलने वाली गुटका साईज और डिमाई साईज से लेकर समाचार पत्र साईज में निकलने वाली पत्रिकाओं के साथ-साथ अनेक पत्रिकाओं के भारी-भरकम विशेषांक भी सुरक्षित है।
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आकार में बड़ी अब तक जितनी भी देशी-विदेशी लघुकथाएँ मैंने पढ़ी हैं, वे डिमाई आकार की पुस्तक के दो पृष्ठों तक की भी हैं तथापि महत्वपूर्ण यही अधिक है कि आकार में छोटी रहकर भी कथा-रचना लघुकथा का फार्म कायम रख पाई है अथवा नहीं।
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चार कवितायें: सिद्धेश्वर सिंह ०१-पुस्तक समीक्षा कागज-उजला चमकीला मुलायम सुचिक्कण छपाई-अच्छी पठनीय फांट-सुंदर आवरण-बढ़िया शानदार कलात्मक आकर्षक आकार-डिमाई क्राउन रायल जेबी (चाहे जो समझ लें) कीमत-थोड़ी अधिक (क्या करें इस महँगाई का वैसे भी, बिकती कहाँ हैं हि्न्दी की किताबें) पुरस्कार-लगभग तय (जय जय जय) अखबारों में बची नहीं जगह पत्रिकाओं में शेष हैं इक्का-दुक्का पृष्ठ सुना है ब्लाग भी कोई जगह है (विस्तार के भय से वहाँ का हाल-चाल फिर कभी।)