कि तडपन की शिकन को दाँतो से दाब करमुस्कुरा करयह कह देना “जहाँ रहो खुश रहो”फिर एक गेहरी खामोश मौत मर जानाकैसा होता है..
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येः होगा मेरी जाँ यकीं तो करो तुम ये कुछ पल की तडपन गुजर जाने दो फिर नया एक सवेरा उगेगा यकीनन येः गम का अँधेरा छटेगा यकीनन ।
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मेरी साँस लेती हई लाश से पूछोकि तडपन की शिकन को दाँतो से दाब करमुस्कुरा करयह कह देना “जहाँ रहो खुश रहो”फिर एक गेहरी खामोश मौत मर जानाकैसा होता है..
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दोस्तों मेरे भाई साहित्यकार कवि ने मुझे बढ़े प्रेम से एक होस्टल की दुनिया मेर रहने वाली बच्ची के तडपन और बिलखना एक कविता के माध्यम से भेजी हे उनसे इजाजत मिलने पर में उसे आप टक पहुंचा रहा हूँ..............जो उन्हीं के शब्दों में हे..
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खामोश मौतवो जो तङप भी नही पाते हैउनसे क्या पूछते हो मौत क्या है, तङप कर जिनमे सह लेने का साहस आ जाता हो,उनसे क्या पूछते हो मौत क्या है....मेरी साँस लेती हई लाश से पूछोकि तडपन की शिकन को दाँतो से दाब करमुस्कुरा करयह कह देना “जहाँ रहो खुश रहो”फिर एक गेहरी खामोश मौत मर जानाकैसा होता है..
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मेरा सारा आलस, सारे काम, मेरे से टूटा और जुङा हर नाम, कूट-कूट कर भरे व्यसन, वासना, दुर्विचार, मेरा अहंकार, हर दिन की जीत, हर रोज़ की हार, मेरा प्रेम, समर्पण, मेरा जुङाव और भटकाव, टूटन, तडपन खुद का चिंतन, कंठ तक भरा रीतापन, मजे में डूबी हर एक बात, मुझे उठाने और गिराने मैं लगे सैंकङों हाथ, उसकी नफरत, मेरा प्यार, हर अनुभव, हर चोट, हर मार, सारी प्राप्तियाँ, सारे आनंद, सारे सुकून, मुझसे जुडा हर काला, सफेद, तोतई और मरुन, मेरी सारी ताकत, सारी खामी,.....श्री कृष्णम् समर्पयामी।