' ' तत्त्ववेत्ता ने उत्तर दिया ‘‘ बिल्कुल ठीक कहा आपने! जब कप में स्थान नहीं हो तो चाय नहीं डालना चाहिए-चाय व्यर्थ जाती है।
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वे स्वाध्यायी भी नहीं थे, अध्यात्म तो बहुत ही ऊपर का पद है, तत्त्ववेत्ता होने की तो कल्पना ही नहीं किया जा सकता है ।
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इन महत्त्वपूर्ण मोड़ों पर सजग-सावधान करने और उँगली पकड़कर सही रास्ता दिखाने के लिए हमारे तत्त्ववेत्ता, मनीषियों ने षोडश संस्कारों का प्रचलन किया था ।।
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भौतिकवादी को भौतिक फायदा होगा, आयुर्वेदवाले को औषधीय फायदा होगा, भगवदभाव वाले को अपना चित्त निर्माण होगा और तत्त्ववेत्ता अष्टधा प्रकृति के संगदोष से मुक्त अपने स्वरूप को ही देखेगा।
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उसके सम्बन्ध में श्री अरविन्द कहते हैं-‘‘ दर्शन कवि की एक विशेष शक्ति है, जिस प्रकार विवेक तत्त्ववेत्ता का विशेष वरदान है और विश्लेषण वैज्ञानिक की स्वाभाविक देन है।
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अध्यात्म जहां से वास्तव में ' धर्म ' में प्रवेश मिलता है और तब साधक कहलाने का अवसर प्राप्त होता है-अध्यात्मवेत्ता और तत्त्ववेत्ता तो बहुत-बहुत-बहुत दूर की बात है ।
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श्री अरविन्द कहते हैं-“दर्शन कवि की एक विशेष शक्ति है, जिस प्रकार विवेक तत्त्ववेत्ता का विशेष वरदान है और विश्लेषण वैज्ञानिक की स्वाभाविक देन है।” यही दर्शन की शक्ति, अपने अनुभव के सत्य
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कोई आदरणीय होते हैं, कोई माननीय होते हैं, कोई वंदनीय होते हैं, कोई श्रद्धेय होते हैं, कोई प्रशंसनीय होते हैं किंतु सत्यस्वरूप में जगानेवाले, तीनों तापों से बचानेवाले साक्षात् परब्रह्म-परमात्म-स्वरूप तत्त्ववेत्ता भगवान व्यास तो पूजनीय हैं।
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इन दोनों (योग-अध्यात्म और तत्त्वज्ञान) की वास्तविक जानकारी क्रमश: सक्षम अध्यात्मवेत्ता (गुरु) और पूर्णावतार रूप तत्त्ववेत्ता (सदगुरु) से ही यथार्थ जानकारी और साक्षात् दर्शन सहित वास्तविक समझ की प्राप्ति सम्भव है ।
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कोई आदरणीय होते हैं, कोई माननीय होते हैं, कोई वंदनीय होते हैं, कोई श्रद्धेय होते हैं, कोई प्रशंसनीय होते हैं किंतु सत्यस्वरूप में जगाने वाले, तीनों तापों से बचाने वाले साक्षात् परब्रह्म-परमात्म-स्वरूप तत्त्ववेत्ता भगवान व्यास तो पूजनीय हैं।