अपनी पुस्तक “ल नौसी” में सार्त्र एक ऐसे अध्यापक की कथा सुनाते हैं जिसे ये इलहाम होता है कि उसका पर्यावरण जिससे उसे इतना लगाव है वो बस किञचित् निर्जीव और तत्वहीन वस्तुइएँ से निर्मित है।
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अपनी पुस्तक “ल नौसी” में सार्त्र एक ऐसे अध्यापक की कथा सुनाते हैं जिसे ये इलहाम होता है कि उसका पर्यावरण जिससे उसे इतना लगाव है वो बस किञचित् निर्जीव और तत्वहीन वस्तुइएँ से निर्मित है।
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दूसरों की पोस्ट पर आग लगाकर उसमें अपनी तत्वहीन पोस्ट के लिए टिप्पणियाँ जुटाकर हाथ सेंकने वाले कई परजीवी मौजूद हैं हिन्दी ब्लॉग-जगत में. धन्यवाद! [Note: इस टिप्पणी के सारे हाईलाईट और इटैलिक्स मेरे हैं और व्यंग्यात्मक हैं.
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' ' यहाँ की दृश्यावली में कुछ खास न होने पर भी वहाँ खड़े होने पर एक अलौकिक अनुभूति होती है लगता है आप पृथ्वी के गर्भमुख पर खड़े हैं, अस्तित्वहीन तत्वहीन देहहीन और बस-क्षणमात्र में ही यह अणुओं का राशिपुँज नश्वर शरीर हवा में बिखरकर बिला जाएगा।
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जहाँ गेहू का रस हमारे लिए एक कारगर एवं सफल इलाज है वही इसके प्रयोग में कुछ सावधानियां बरतना अत्यंत आवश्यक है. जैसे...........-जवारे का रस हमेशा ताजा ही प्रयोग में लायें, इसे फ्रिज में रखकर कभी भी इस्तमाल न करें क्यूंकि तब वह तत्वहीन हो जाता है.
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हालाँकि ऐसा स्वाभाविक रूप से ही होता है, मगर कुछ लोग बिल्कुल ऐसा लिखते हैं जैसे बेमन से लिख रहे हों या फ़िर ऐसा की की कहीं से बिल्कुल नकल मार कर टीप दिया हमारे झेलने के लिए, जानते हैं इसका नतीजा क्या होता है, बिल्कुल तत्वहीन और नीरस लगता है वो सब कुछ।
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वैसे जिनका धर्म निराश और नीरस होता है, तत्वहीन और छिछला होता है, जिन्हे दूसरों का अच्छा स्वरूप नहीं भाता है, वो दुष्ट और नीच प्रकृति के क्रोधाग्नि से जलते हुए गंदे लोगों का ही कुकर्म है ये और शायद यही कुकर्म है की जिसका फल इनका पूरा कुनबा बड़े प्यार से भुगतता है।
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शंकाओं के कारण उसकी अपने छोटे भाई बहिनों से नही बनती है, अधिकतर वह उनके ऊपर भूत जैसा हावी होता है, तथा घर के अन्दर विभिन्न कारण पैदा करने के बाद एक प्रकार का डर या टेंसन पैदा किये रहता है, जातक के रिहायसी स्थान पर एक प्रकार की खामोशी रहती है और झूठे और तत्वहीन विचारों से घर के लोग लडा करते है, अक्सर उनके अन्दर आपस में गाली गलौज और मारपीट आम बात होती है.