क्या आज बड़ा से बड़ा साहित्यकार ताडपत्र पर रचनाएं लिखना पसंद करेगा..?...तो फिर अंतर्जाल से परहेज़ क्यों..? (आपके ब्लॉग से काफी प्रभावित हूं.
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क्या आज बड़ा से बड़ा साहित्यकार ताडपत्र पर रचनाएं लिखना पसंद करेगा..?...तो फिर अंतर्जाल से परहेज़ क्यों..? (आपके ब्लॉग से काफी प्रभावित हूं.
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परंतु लिखे बिना अक्षर अक्षर कैसे रहेंगे? लिपियाँ ईजाद हुईं और फिर शिलालेख, चर्म आदि से होकर भोजपत्र, ताडपत्र आदि तक पहुंचे।
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अनुमान है कि हिन्दुस्तान में 5, 000,000 से 10,000,000 (जी हां पचास लाख से एक करोड) के बीच ताडपत्र पर लिखे पुस्तक अभी भी अस्तित्व में है.
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अब यह तो नहीं होता ना कि कागज़ बनने से पहले के साहित्य को इस आधार पर ख़ारिज़ कर दिया जाये कि वह ताडपत्र पर लिखा गया है।
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अब यह तो नहीं होता ना कि कागज़ बनने से पहले के साहित्य को इस आधार पर ख़ारिज़ कर दिया जाये कि वह ताडपत्र पर लिखा गया है।
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केरल में आज भी अक्षरमाला सिखाने वाले गुरुकुलों में ताडपत्र चलते हैं (लेकिन आज की अर्थव्यवस्था एवं अंग्रेजी-केंद्रित शिक्षा की मार से ये गुरुकुल लुप्त होते जा रहे हैं).
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इस सत्य की सबसे अधिक ठोस रूप में पुष्टि ओडिशा म्यूजियम, भुवनेश्वर में संरक्षित रखे ब्रम्हाण्डपुराण के ताडपत्र से होती है जिसमे एक श्लोक त्रिकलिंग क्षेत्र की स्पष्ट जानकारी प्रदान करता है।
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ताडपत्र से समाचारपत्र तक के सफर को देखें या समाचारपत्र से रेडियो या रेडियो से टीवी और अब उपग्रह रेडियो, इन्टरनेट रेडियो या वेब २.०. समाज की बेहतरी भविष्योन्मुख होने में ही है.
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ताडपत्र एवं भोजपत्र नाम सब ने सुन रखा है, लेकिन यदि मैं बताऊं कि बचपन में हमारी पाठ्य पुस्तकें ताडपत्र पर हुआ करती थीं तो आप को ताज्जुब होगा लेकिन यह सत्य है.