विलियम जोन्स (१७४६-१७९४तक), फ्रांस बॉप्प (१७९१-१८६७), मैक्समूलर (१८२३-१९००), कर्टिअस (१८२०-१८८५), औगुस्ट श्लाइखर (१८२३-१८६८) प्रभृति विद्वानों ने तुलनात्मक भाषाविज्ञान के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान किया है।
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बहुभाषी शब्दकोशों में तुलनात्मक शब्दकोश भी यूरोपीय भाषाओं में ऐतिहासिक और तुलनात्मक भाषाविज्ञान की प्रौढ उपलब्धियों से प्रमाणीकृत रूप में निर्मित हो चुके हैं ।
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इसका उद् देश्य हिंदी शिक्षण-प्रशिक्षण, हिंदी भाषा, साहित्य और तुलनात्मक भाषाविज्ञान के उच्चतर अध्ययन के अलावा हिंदी का राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रचार एवं प्रसार करना है।
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पश्चिम के विद्वानों ने संस्कृत भाषा और ऋक्संहिता से परिचय पाने के कारण हो तुलनात्मक भाषाविज्ञान के अध्ययन को सही दिशा दी तथा आर्यभाषाओं के भाषाशास्त्रीय विवेचन में प्रौढ़ि एवं शास्त्रीयता का विकास हुआ।
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पश्चिम के विद्वानों ने संस्कृत भाषा और ऋक्संहिता से परिचय पाने के कारण हो तुलनात्मक भाषाविज्ञान के अध्ययन को सही दिशा दी तथा आर्यभाषाओं के भाषाशास्त्रीय विवेचन में प्रौढ़ि एवं शास्त्रीयता का विकास हुआ।
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19 वीं सदी में डार्विन के विकासवाद के सिद्धांत से भाषाविज्ञान का क्षेत्र भी अछूता न रहा और तुलनात्मक भाषाविज्ञान के नाम से एक नया आयाम भाषाविज्ञान के क्षेत्र में जुड़ गया, जिसके अंतर्गत विभिन्न भाषाओं में अंतर्निहित समान और असमान वृत्तियों के आधार पर विश्व की सभी भाषाओं को विभिन्न भाषा-परिवारों में विभाजित कर दिया गया और उनकी प्रवृत्तियों के तुलनात्मक अध्ययन पर बल दिया जाने लगा.