इस द्वितीय व्युत्पत्ति के अनुसार प्रेम का अर्थ है-प्रेम होना, तृप्त होना, आनन्दित होना या प्रेम, तृप्त और आनंदित करना।
22.
पति के कपड़ों को सुंघकर तृप्त होना और उन्हीं कपड़ों से ये अंदाजा लगा लेना कि उसके पति का किसी से अवैध सम्बन्ध है।
23.
मेनका, रम्भा और सहजन्या का मानना है कि सुरलोक अमर है यहाँ के निवासियों को व्यंजनों की गंध लेकर ही तृप्त होना पड़ता है।
24.
उस समय तक तृप्त होना ही नहीं है जबतक कि स्वय और परमात्मा में रत्तीभर का भी फासला है, तब तक तृप्त नहीं होना हैं।
25.
किंतु दसों इंद्रियों का दैवी संपदा से परिपूर्ण होकर ईश्वरीय सुख में तृप्त होना, यही श्रीराम तथा उनकी साधारण सी दिखने वाली परम तेजस्वी वानर सेना है।
26.
वे अपने स्वजनों से श्राद्ध की इच्छा रखते हैं और उससे तृप्त होना चाहते हैं, लेकिन सूर्यास्त के बाद यदि वे निराश लौटते हैं तो श्राप देकर जाते हैं।
27.
याद है न तुझे! पहले तो हमें यार औरों के मुंह से ही सुरा की खुशबू सूंघ तृप्त होना पड़ता था और आज घर में ही बार बना रखा है।'
28.
मैं दीन-हीन दशा तथा सम्पन्नता में भी रहना जानता हूं, हर बात और प्रत्येक परिस्थिति में मैंने तृप्त होना, भूखा रहना, और घटना-बढ़ना सीख लिया है।
29.
[ग] तीन गुणों के भावों में अहंकार होता है, करता भाव की जननी, अहंकार है [गीता-3.27], फिर ऐसे में तृप्त होना कैसे संभव है?
30.
एक तो कि अगर उसी चीज से आपका सम्मोहन छूट जाए तो आप एकदम हैरान हो जाएंगे कि जिससे आप तृप्त हो रहे थे, उससे तृप्त होना तो दूर, उससे विकर्षण, जुगुप्सा, घृणा हो जाएगी।