अर्थात्-' यात् ' अक्षर की देवी-' त्रिपुरा ', देवता-' त्रयम्बक ', बीज-' त्रीं ', ऋषि-' माकर्ण्डेय ', यन्त्र-' त्रिधायन्त्रम् ', विभूति-' त्रिधा एवं त्रिशूला ' तथा प्रतिफल-त्रिगुणाधिकार एवं त्रितापमुक्ति हैं ।
22.
जैन परम्परा के चौबीस तीर्थकरोंमें ऋषभदेव ही ऐसे तीर्थकर हैं, जिसे संसार का प्राचीनतम ग्रन्थ ऋग्वेद इन शब्दों में वर्णन करता है-त्रिधा बद्धोवृषभोरोरवीतिमहादेवोमत्यांआ विवेश॥ इस मन्त्रांश का शब्दार्थ है-तीन स्थानों से बंधे हुये वृषभ ने बारंबार घोषणा की कि महादेव मनुष्यों में ही प्रविष्ट हैं।
23.
देह पर सर्प और व्याघ्रचर्म धारे, शरीर पर श्मशान-राख सुशोभित किए, माथे पर त्रिधा सृष्टि का प्रतीक धारे, चन्द्र एवं गंगा को अपनी जटाओं में समेटे हिमशिला पर निर्द्वंद्व विराजा यह देव, सच में, संपूर्ण भारतीय मनीषा का अनुपमेय प्रतीक-बिंब है।
24.
क्या ऋग्वेद (४, ५ ८, ३) के ‘ त्रिधा बद्धो वृषभो रोरवीति महादेवो मर्त्यानाविवेश ' का यह अर्थ नहीं हो सकता कि त्रिधा (ज्ञान, दर्शन और चारित्र से) अनुवद्ध वृषभ ने धर्म-घोषणा की और वे एक महान देव के रूप में मर्त्यो में प्रविष्ट हुए? इसी संबंध में ऋग्वेद के शिश्नदेवों (नग्न देवों) वाले उल्लेख भी ध्यान देने योग्य हैं (ऋ. वे. ७, २ १, ५ ; १ ०, ९९, ३) ।
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क्या ऋग्वेद (४, ५ ८, ३) के ‘ त्रिधा बद्धो वृषभो रोरवीति महादेवो मर्त्यानाविवेश ' का यह अर्थ नहीं हो सकता कि त्रिधा (ज्ञान, दर्शन और चारित्र से) अनुवद्ध वृषभ ने धर्म-घोषणा की और वे एक महान देव के रूप में मर्त्यो में प्रविष्ट हुए? इसी संबंध में ऋग्वेद के शिश्नदेवों (नग्न देवों) वाले उल्लेख भी ध्यान देने योग्य हैं (ऋ. वे. ७, २ १, ५ ; १ ०, ९९, ३) ।