नेवले और साँप की लड़ाई में जब नेवला थकता और विष दंशन से उद्विग्न होता है, तो मुड़ कर किसी जड़ी बूटी को खाने चला जाता है।
22.
जिन अनुभवों के दंशन का विष साधारण मनुष्य की आत्मा को मूर्च्छित कर के उसके सारे जीवन को विषाक्त बना देता है, उसी से उन्होंने सतत जागरुकता और मानवता का अमृत प्राप्त किया है।
23.
सभी उरों के अंधकार में एक तड़ित वेदना उठेगी, तभी सृजन की बीज-वृद्धि हित जड़ावरण की महि फटेगी शत-शत बाणों से घायल हो बढ़ा चलेगा जीवन-अंकुर दंशन की चेतन किरणों के द्वारा काली अमा हटेगी ।
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सभी उरों के अंधकार में एक तड़ित वेदना उठेगी, तभी सृजन की बीज-वृद्धि हित जड़ावरण की महि फटेगी शत-शत बाणों से घायल हो बढ़ा चलेगा जीवन-अंकुर दंशन की चेतन किरणों के द्वारा काली अमा हटेगी ।
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सभी उरों के अंधकार में एक तड़ित वेदना उठेगी, तभी सृजन की बीज-वृद्धि हित जड़ावरण की महि फटेगी शत-शत बाणों से घायल हो बढ़ा चलेगा जीवन-अंकुर दंशन की चेतन किरणों के द्वारा काली अमा हटेगी ।
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सभी उरों के अंधकार में एक तड़ित वेदना उठेगी, तभी सृजन की बीज-वृद्धि हित जड़ावरण की महि फटेगी शत-शत बाणों से घायल हो बढ़ा चलेगा जीवन-अंकुर दंशन की चेतन किरणों के द्वारा काली अमा हटेगी ।
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दिये प्रणय के जो क्षण तुमने, जीवन के आधार बन गए, घृणा, उपेक्षा, पीड़ा, दंशन परित्यक्ता को प्यार बन गये! सुख सज्जा के स्वप्न ह्रदय ने मिलन रात्रि में खूब सँवारे, हुई विरह की भोर, नयन के मोती ही गलहार बन...
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होटल लौटकर, बहुत देर तक सोचता रहा था-सारे उपन्यास में बस वही स्थल बसवडिया ही क्यों याद रहा त्रिलोचन को? बांसों का झुरमुट, अंधकार में जुगनुओं की चमक, सपों की बाबियों से आती हुई रिस-भरी फुफकार और सहस्त्रों मशको का एक-साथ ही शत-शत दंशन...?
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होटल लौटकर, बहुत देर तक सोचता रहा था-सारे उपन्यास में बस वही स्थल बसवडिया ही क्यों याद रहा त्रिलोचन को? बांसों का झुरमुट, अंधकार में जुगनुओं की चमक, सपों की बाबियों से आती हुई रिस-भरी फुफकार और सहस्त्रों मशको का एक-साथ ही शत-शत दंशन...? दूसरे दिन किसी मित्र से जब सुना कि त्रिलोचन जी मैला आँचल के प्रशंसकों में से हैं तो फिर उस रात को बहुत देर तक बस यहीं सोचता रहा कि साडी किताब मे त्रिलोचन जी को वही स्थल और प्रसंग क्यों याद रहा?
30.
कितनी ही बातें मथती हैं मन को कई कई बार अंतस के सागर में उमड़ घुमड़ चलते हैं लपटों से जलते हैं अनगिनत विचार कितनी ……………. यह कैसा मंथन है-अमृत घट रीता है नहीं कोई नीलकंठ अब विष को पीता है आसुरी छलावे से छले देवता जाते कस्तूरी में अटकी हृदय-हरिण की साँसे! कुंठा से बद्ध हुए आकुल उदगार कितनी …………… पीड़ा है-दंशन भी मोह है-सम्मोहन भी सर्पिल पगडण्डी सी-जीवन की राहें भवसागर में-प्राणों की नौका लहराए विप्लव में उलझा भावों का संसार कितनी …………….