तीसरा प्रकरण है यज्ञ का, यज्ञ क्या है, कितने प्रकार का है, उसे हम दर्शन की दृष्टि से कैसे समझें? चौथा प्रकरण है ज्ञान का, ज्ञान के महत्त्व का एवं संशयों से मुक्त हो ज्ञान की प्राप्ति द्वारा कर्म में तत्पर होने का।
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यदि तर्क व दर्शन की दृष्टि से न भी देखा जाये तो भी पूर्णता कहीं नहीं दिखती है, संभावना समझ के साथ साथ बढ़ती रहती है, अपूर्णता संभावना के साथ बढ़ती रहती है, जो आज पूर्णता लिये सी दिख रही है कल वह अपूर्णता लिये हुये सी दिखने लगती है।