प्रत्यर्थी का यह आचरण इस ओर इंगित करता है कि जवाब दावे मे उल्लिखित कथन एवं याची की जिरह मे प्रत्यर्थी द्वारा दिये गये मे कथन किया है और बिना किसी सुझावो मे कोई सत्यता नही है बल्कि मुकदमे की दृश्टि से ही प्रत्यर्थी ने अपने जवाब दावे आधार के याची को जिरह मे उक्त सुझाव दिया है जब कि याची द्वारा दिया गया साक्ष्य षपथ पर है एवं अखण्डित है जिस पर अविष्वास करने का कोई कारण पत्रावली पर उपलब्ध नही पाया जाता है।