हिन्दी की पूर्वी शैलियों में अक्सर श के स में बदलने की प्रवृत्ति रही है सो शुदि पहले सुदि हुआ फिर भाषा में स्वर के दीर्घीकरण की वृत्ति के चलते यह सुदी बन गया।
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ए. एल. ए. का महत्व इसलिए भी है कि जब यह दीर्घीकरण और असंत्रप्तिकरण द्वारा स्टेरिडोनिक-> ईकोसाटेट्रोनोइक-> इकोसा पेंटानोइक-> डोकासाहेग्जानोइक एसिड में परिवर्तित होता है।
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कोशिकाओं का विभाजन, दीर्घीकरण तथा परिपक्वन वर्धमान प्रक्रम है, जो मूल के ऊर्ध्वाधर स्तरविन्यास में मूल गोप, शीर्ष विभज्योतक, दीर्घीकरण क्षेत्र तथा परिपक्वन क्षेत्र में मूल गोप, शिर्ष विभज्योतक, दीर्घीकरण क्षेत्र तथा परिपक्वन क्षेत्र में होता है।
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कोशिकाओं का विभाजन, दीर्घीकरण तथा परिपक्वन वर्धमान प्रक्रम है, जो मूल के ऊर्ध्वाधर स्तरविन्यास में मूल गोप, शीर्ष विभज्योतक, दीर्घीकरण क्षेत्र तथा परिपक्वन क्षेत्र में मूल गोप, शिर्ष विभज्योतक, दीर्घीकरण क्षेत्र तथा परिपक्वन क्षेत्र में होता है।
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कोशिकाओं का विभाजन, दीर्घीकरण तथा परिपक्वन वर्धमान प्रक्रम है, जो मूल के ऊर्ध्वाधर स्तरविन्यास में मूल गोप, शीर्ष विभज्योतक, दीर्घीकरण क्षेत्र तथा परिपक्वन क्षेत्र में मूल गोप, शिर्ष विभज्योतक, दीर्घीकरण क्षेत्र तथा परिपक्वन क्षेत्र में होता है।
कोशिकाओं का विभाजन, दीर्घीकरण तथा परिपक्वन वर्धमान प्रक्रम है, जो मूल के ऊर्ध्वाधर स्तरविन्यास में मूल गोप, शीर्ष विभज्योतक, दीर्घीकरण क्षेत्र तथा परिपक्वन क्षेत्र में मूल गोप, शिर्ष विभज्योतक, दीर्घीकरण क्षेत्र तथा परिपक्वन क्षेत्र में होता है।
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कोशिकाओं का विभाजन, दीर्घीकरण तथा परिपक्वन वर्धमान प्रक्रम है, जो मूल के ऊर्ध्वाधर स्तरविन्यास में मूल गोप, शीर्ष विभज्योतक, दीर्घीकरण क्षेत्र तथा परिपक्वन क्षेत्र में मूल गोप, शिर्ष विभज्योतक, दीर्घीकरण क्षेत्र तथा परिपक्वन क्षेत्र में होता है।
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कोशिकाओं का विभाजन, दीर्घीकरण तथा परिपक्वन वर्धमान प्रक्रम है, जो मूल के ऊर्ध्वाधर स्तरविन्यास में मूल गोप, शीर्ष विभज्योतक, दीर्घीकरण क्षेत्र तथा परिपक्वन क्षेत्र में मूल गोप, शिर्ष विभज्योतक, दीर्घीकरण क्षेत्र तथा परिपक्वन क्षेत्र में होता है।
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एक तो यह कि द्वित्व व्यंजन में एक व्यंजन-ल् का लोप और पूर्व स्वर का दीर्घत्व प्रथम प्राकृत काल की प्रवृत्ति के अनुकूल नहीं है दूसरी यह कि सामान्यतः इस स्थिति में शब्द के दूसरे अक्षर के ह्रस्व स्वर का दीर्घीकरण होना चाहिए था।