बड़ी कठिनाई से अनेक आश्वासन देने पर भी वह लौटी नहीं, वरन् वहीं एक जरा-जीर्ण पेड़ का सहारा लेकर दृष्टि-पथ से बाहर जाते हुए पुत्र को आंसुओं के तार से बांध लेने का निष्फल प्रयत्न करती रही।
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दूसरी धारा के कवि रघुवीर सहाय को दृष्टि-पथ से ओझल नहीं करते मगर अपनी काव्य-चेतना, उसे चरितार्थ करने के कलात्मक अंदाज़, मंतव्यों, सरोकारों और रुझानों के मामले में केदारनाथ सिंह के ज़्यादा नज़दीक हैं।
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छाया / अज्ञेय जो कहा नही गया / अज्ञेय जो पुल बनाएंगे / अज्ञेय ताजमहल की छाया में / अज्ञेय दूर्वांचल / अज्ञेय दृष्टि-पथ से तुम जाते हो जब / अज्ञेय देखिये न मेरी कारगुज़ारी / अज्ञेय देना-
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इसलिए राजनीति और साहित्य दोनों को सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की अवधारणा को दृष्टि-पथ में रख, औपनिषदिक मंत्र ' चरैवेति चरैवेति ' का घोष गुंजाते हुए त्वर गति से आगे बढ़, भारत को विकसित राष्ट्रों की पंक्ति में खड़ा करना है।