राजाओं के राज करने के दैवी अधिकार जैसी या रैयत के इज्जत से अपने मालिकों का हुक्म मानने के नम्र कर्तव्य जैसी कोई चीज नहीं है।
22.
वैसे भी राजनीति शास्त्र में राजा के दैवी अधिकार का सिद्धांत प्रचलित रहा है और राजा को धरती पर ईश्वर का प्रतिनिधि बताया गया है.
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राजतंत्र के विकास के साथ राजा दैवी अधिकार के सिद्धांतों की सहायता से प्रजा से प्रजा को समस्त अधिकारों से निरस्त कर राष्ट्र विशेष में संप्रभु बन जाने लगा।
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राजतंत्र के विकास के साथ राजा दैवी अधिकार के सिद्धांतों की सहायता से प्रजा से प्रजा को समस्त अधिकारों से निरस्त कर राष्ट्र विशेष में संप्रभु बन जाने लगा।
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राजतंत्र के विकास के साथ राजा दैवी अधिकार के सिद्धांतों की सहायता से प्रजा से प्रजा को समस्त अधिकारों से निरस्त कर राष्ट्र विशेष में संप्रभु बन जाने लगा।
26.
आपकी भावभंगिमा से लगता है कि आप उस हिंसक और कठोर सामंत के साथ है जिसे कल्याण की मंशा के तहत जनता पर चाबुक चलाने का दैवी अधिकार प्राप्त होता है!
27.
राजा-महराजा कहते हैं कि हमें शासन करने का दैवी अधिकार मिला हुआ हैं, तो दूसरी तरफ उनकी रैयत कहती है कि उसे राजाओं के इस हक का विरोध करने का अधिकार हैं।
28.
उनका न तो राजा के दैवी अधिकार और उसकी सर्वज्ञता की सच्चाई में विश्वास था और न वे यह चाहते थे कि स्वयं शासक इस तरह की वाहियात बात को सच मानें।
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उनका न तो राजा के दैवी अधिकार और उसकी सर्वज्ञता की सच्चाई में विश्वास था और न वे यह चाहते थे कि स्वयं शासक इस तरह की वाहियात बात को सच मानें।
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आपकी भावभंगिमा से लगता है कि आप उस हिंसक और कठोर सामंत के साथ है जिसे कल्याण की मंशा के तहत जनता पर चाबुक चलाने का दैवी अधिकार प्राप्त होता है!