इसके अतिरिक्त पूरे समाज की दृष्टि में प्रत्येक जाति का सोपानवत् सामाजिक संगठन में एक विशिष्ट स्थान तथा मर्यादा है जो इस सर्वमान्य धार्मिक विश्वास से पुष्ट है कि प्रत्येक मनुष्य की जाति तथा जातिगत धंधे दैवी विधान से निर्दिष्ट हैं और व्यापक सृष्टि के अन्य नियमों की भाँति प्रकृत तथा अटल हैं
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इसके अतिरिक्त पूरे समाज की दृष्टि में प्रत्येक जाति का सोपानवत् सामाजिक संगठन में एक विशिष्ट स्थान तथा मर्यादा है जो इस सर्वमान्य धार्मिक विश्वास से पुष्ट है कि प्रत्येक मनुष्य की जाति तथा जातिगत धंधे दैवी विधान से निर्दिष्ट हैं और व्यापक सृष्टि के अन्य नियमों की भाँति प्रकृत तथा अटल हैं
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इसके अतिरिक्त पूरे समाज की दृष्टि में प्रत्येक जाति का सोपानवत् सामाजिक संगठन में एक विशिष्ट स्थान तथा मर्यादा है जो इस सर्वमान्य धार्मिक विश्वास से पुष्ट है कि प्रत्येक मनुष्य की जाति तथा जातिगत धंधे दैवी विधान से निर्दिष्ट हैं और व्यापक सृष्टि के अन्य नियमों की भाँति प्रकृत तथा अटल हैं
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कोई बदला न चुका सके, तो भी उपकारी का मन ही मन सम्मान करता है, आशीर्वाद देता है, इसके अतिरिक्त और एक ऐसा दैवी विधान जिसके अनुसार उपकारी का भण्डार खाली नहीं होता, उस पर ईश्वरीय अनुग्रह बरसता रहता है और जो खर्चा गया है, उसकी भरपाई करता रहता है।
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जब पुरानी रूढ़ियों में हमारा विश्वास टूटने लगता है, पुराना धर्म, पुराना ज्ञान, पुराना दैवी विधान हमें अपने नये विधान के कारण अपर्याप्त और झूठा लगने लगता है, जब हमें पहले-पहल मालूम होता है कि इस अब तक सुव्यवस्थित जान पड़नेवाले विश्व में कुछ अव्यवस्थित, बेठीक भी है, तब हम उसे पाप कहते हैं ;
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निज सहज रूप में संपत हो जानकी-प्राण बोले-” आया न समझ में यह दैवी विधान ; रावण, अधर्मरत भी, अपना, मैं हुआ अपर,-यह रहा, शक्ति का खेल समर, शंकर, शंकर! करता मैं योजित बार-बार शर-निकर निशित, हो सकती जिनसे यह संसृति सम्पूर्ण विजित, जो तेज: पुंज, सृष्टि की रक्षा का विचार-हैं जिसमें निहित पतन घातक संस्कृति अपार-
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दूसरी बात यह समझनी है की दुखद परिस्थिति को हम चाहे फिर भी रोक नहीं सकते क्योंकि वह प्राकृतिक है | जैसे बुढ़ापा, मृत्यु आदि दैवी विधान है और दैवी विधान सबके मंगल के लिए ही होता है | यदि कोई भी वृद्ध न हो, किसीकी भी मृत्यु न हो तो यह संसाररूपी पाठशाला चले कैसे? पाठशाला से तो पुराने विद्यार्थी बाहर निकलते है और नए उसमे प्रवेश करते है तभी पाठशाला चलती है |
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दूसरी बात यह समझनी है की दुखद परिस्थिति को हम चाहे फिर भी रोक नहीं सकते क्योंकि वह प्राकृतिक है | जैसे बुढ़ापा, मृत्यु आदि दैवी विधान है और दैवी विधान सबके मंगल के लिए ही होता है | यदि कोई भी वृद्ध न हो, किसीकी भी मृत्यु न हो तो यह संसाररूपी पाठशाला चले कैसे? पाठशाला से तो पुराने विद्यार्थी बाहर निकलते है और नए उसमे प्रवेश करते है तभी पाठशाला चलती है |
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यह कृति कवि के समकालीन अंग्रेज़ दार्शनिक बोलिंगब्रोक की दार्शनिक विचारधारा का ही पद्यानुवाद मानी जाती है जो ईसाइयत की ही सरणिव्यवस्था को ‘ चेन ऑफ़ बीइंग ' का नाम दे कर यही संदेश देता है कि सृष्टि में हर जीव और पदार्थ का, ‘ अस्तित्व की कड़ी ' में एक तयशुदा स्थान है, उस स्थान का अतिक्रमण करना संभव नहीं, अतिक्रमण करने पर सज़ा का दैवी विधान है जो आदम और हौवा को भी पापी बना चुका है।