लेकिन बहुत सारे अपराध या गलतियाँ उजागर ही नहीं हो पाते! दोनों ही दशाओं में दोषी व्यक्ति के मन में अपराधबोध (Guilt) जन्म ले लेता है! जिसके कारण ऐसा व्यक्ति दिन-रात परेशान और तनावग्रस्त रहने लगता है!
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यह कहना कठिन होता है कि इस नक्षत्र वाले राक्षसी प्रवृतियों की ओर विशेष आकर्षित होते हैं या दैवीय प्रवृतियों की ओर, परन्तु दोनों ही दशाओं में इन्हे अदभुत शक्ति, आश्चर्यजनक सफलता और कार्मिक प्रतिफल के कारण निराशा जरूर भुगतनी पडती है.
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लेकिन हो सकता है कि, इसका दूसरा पहलू भी हो कि, उसने यह सब ख़ुद के लिए नहीं बल्कि पत्नी और बच्चों के भविष्य के लिए ही किया! तब और अब, दोनों ही दशाओं में उसके हाथ कुछ भी नहीं है?
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समीर भाई, मज़ाक के लिए माफ़ करिए! संस्मरण या अनुभूति जिसकी भी हो, उदास कर जाती है!....और यही लेखन की सच्ची कामयाबी है! लेकिन हो सकता है कि,इसका दूसरा पहलू भी हो कि, उसने यह सब ख़ुद के लिए नहीं बल्कि पत्नी और बच्चों के भविष्य के लिए ही किया! तब और अब, दोनों ही दशाओं में उसके हाथ कुछ भी नहीं है?