कवि जिनसे (९वीं शती ईसवी) “मेघदूत” की तरह ही मंदाक्रांता छंद में तीर्थकर पार्श्वनाथ के जीवन से संबद्ध चार सर्गों का एक काव्य “पार्श्वाभ्युदय” लिखा जिसमें मेघ के दौत्य के रूप में मेघदूत के शताधिक पद्य समाविष्ट हैं।
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कवि जिनसे (९वीं शती ईसवी) “मेघदूत” की तरह ही मंदाक्रांता छंद में तीर्थकर पार्श्वनाथ के जीवन से संबद्ध चार सर्गों का एक काव्य “पार्श्वाभ्युदय” लिखा जिसमें मेघ के दौत्य के रूप में मेघदूत के शताधिक पद्य समाविष्ट हैं।
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राजनयिक दौत्य की समाप्ति दोनों में से किसी राष्ट्र के शासन में क्रांतिकारी परिर्वतन, राष्ट्रों की अध्यक्षता में वैधानिक परिवर्तन होने पर, दोनों में से किसी राष्ट्र के अनुरोध पर अथवा दोनों देशों में युद्ध छिड़ जाने पर हो जाती है।
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राजनयिक दौत्य की समाप्ति दोनों में से किसी राष्ट्र के शासन में क्रांतिकारी परिर्वतन, राष्ट्रों की अध्यक्षता में वैधानिक परिवर्तन होने पर, दोनों में से किसी राष्ट्र के अनुरोध पर अथवा दोनों देशों में युद्ध छिड़ जाने पर हो जाती है।
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कवि जिनसे (९ वीं शती ईसवी) “ मेघदूत ” की तरह ही मंदाक्रांता छंद में तीर्थकर पार्श्वनाथ के जीवन से संबद्ध चार सर्गों का एक काव्य “ पार्श्वाभ्युदय ” लिखा जिसमें मेघ के दौत्य के रूप में मेघदूत के शताधिक पद्य समाविष्ट हैं।
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अनेक विशेषज्ञ और विभिन्न राजनीतिक दलो के नेताओं ने इस वक्तव्य की दौत्य संबंधी भारी भूलों को उजागर किया है, जैसे-बलूचिस्तान मुद्दे को उसमें लाना और पाकिस्तान द्वारा सीमा पार आतंकवाद को जारी रखने पर भी उससे वात्र्ता पुनः प्रारम्भ करने की सहमति व्यक्त करना।
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अंतरराष्ट्रीय विधि के अनुसार कोई भी राज्य या देश अन्य राज्यों से दौत्य संबंध स्थापित करने के लिए बाध्य नहीं है, परंतु अंतरराष्ट्रीय जगत् में उत्तरोत्तर बढ़ते हुए पारस्परिक संबंध एवं सापेक्ष्य के कारण प्रत्येक राष्ट्र के लिए अन्य राष्ट्रों से दौत्य संबंध स्थापित करना उपयोगी सिद्ध होता है।
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अंतरराष्ट्रीय विधि के अनुसार कोई भी राज्य या देश अन्य राज्यों से दौत्य संबंध स्थापित करने के लिए बाध्य नहीं है, परंतु अंतरराष्ट्रीय जगत् में उत्तरोत्तर बढ़ते हुए पारस्परिक संबंध एवं सापेक्ष्य के कारण प्रत्येक राष्ट्र के लिए अन्य राष्ट्रों से दौत्य संबंध स्थापित करना उपयोगी सिद्ध होता है।
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अंतरराष्ट्रीय विधि के अनुसार कोई भी राज्य या देश अन्य राज्यों से दौत्य संबंध स्थापित करने के लिए बाध्य नहीं है, परंतु अंतरराष्ट्रीय जगत् में उत्तरोत्तर बढ़ते हुए पारस्परिक संबंध एवं सापेक्ष्य के कारण प्रत्येक राष्ट्र के लिए अन्य राष्ट्रों से दौत्य संबंध स्थापित करना उपयोगी सिद्ध होता है।
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अंतरराष्ट्रीय विधि के अनुसार कोई भी राज्य या देश अन्य राज्यों से दौत्य संबंध स्थापित करने के लिए बाध्य नहीं है, परंतु अंतरराष्ट्रीय जगत् में उत्तरोत्तर बढ़ते हुए पारस्परिक संबंध एवं सापेक्ष्य के कारण प्रत्येक राष्ट्र के लिए अन्य राष्ट्रों से दौत्य संबंध स्थापित करना उपयोगी सिद्ध होता है।