इसके बाद अन्य भग्नावशेषों को भी हमने देखा जिसमें एक टूटा निर्माण खंड था जिसके बारे में बताया गया है की यह संभवतः धर्मराजिका स्तूप के शिखर पर बनाया गया होगा.
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पुन: 1026 ई. में सम्राट महीपाल के शासन काल में स्थिरपाल और बसन्तपाल नामक दो भाइयों ने सम्राट की प्रेरणा से काशी के देवालयों के उद्धार के साथ-साथ धर्मराजिका स्तूप एवं धर्मचक्र का भी उद्धार किया।
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नीचे चित्र को अगर ध्यान से देखेंगे तो पाएँगे कि इस पूरे इलाके में धमेख स्तूप के आलावा अशोक स्तंभ, धर्मराजिका स्तूप के अवशेष, बौद्ध विहार और भिक्षुओं के ध्यान करने की जगहें बनी हैं।
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सारनाथ में साल 1798 में धर्मराजिका स्तूप की खुदाई के दौरान बनारस के राजा चेतसिंह के दीवान जगत सिंह के मजदूरों को एक पत्थर के बक्से में रखी मंजूषा में अस्थियां मिली थीं जिसके बारे में माना जाता है कि यह महात्मा बुद्ध की थीं।