चीनियों ने उन्हें दिये जा रहे धर्माचार सम्बन्धित दंड की व्याख्या खार्नांग कुशो को यह बता कर की, ” ईश्वर के नाम पर तुम बुरे रहे हो और अपने मत के प्रयोग से स्वयं के लाभ हेतु जनता को मूर्ख बनाते रहे हो।
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आपने एक ओर अस्पृश्य समझे जाने वाले हजारों लोगों को शुद्ध धर्माचार का उपदेश देकर धर्मपाल बनाया तो दूसरी ओर विषमता, व्यग्रता, तनाव और अशांति से बेचैन व्यक्ति को समता दर्शन और समीक्षण ध्यान के माध्यम से अन्तरावलोकन व आत्म निरीक्षण की प्रेरणा दी।
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दुश्मनों के सर को सिर्फ काट कर झुकाना है ताकि बच सके न कोई दरिंदा अत्याचार का व्यर्थ जा सके न मेरा जन्म धर्माचार का-जन्म धर्माचार का-जन्म धर्माचार का जय हिन्द-जय हिन्द-जय हिन्द जय हिन्द-जय हिन्द-जय हिन्द वरुण पंवार
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दुश्मनों के सर को सिर्फ काट कर झुकाना है ताकि बच सके न कोई दरिंदा अत्याचार का व्यर्थ जा सके न मेरा जन्म धर्माचार का-जन्म धर्माचार का-जन्म धर्माचार का जय हिन्द-जय हिन्द-जय हिन्द जय हिन्द-जय हिन्द-जय हिन्द वरुण पंवार
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दुश्मनों के सर को सिर्फ काट कर झुकाना है ताकि बच सके न कोई दरिंदा अत्याचार का व्यर्थ जा सके न मेरा जन्म धर्माचार का-जन्म धर्माचार का-जन्म धर्माचार का जय हिन्द-जय हिन्द-जय हिन्द जय हिन्द-जय हिन्द-जय हिन्द वरुण पंवार
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कहने को वृन्दावन धार्मिक नगरी है और भगवान के भजन को आयीं ये बंगाली विधवाओं के साथ हो रहे इस प्रकार के अमानवीय कृत्य पर कोई भी कथा वाचक या धर्माचार ने मानवता के नाते अंतिम संस्कार के लिए कोई व्यवस्था तक बनाने में पहल नहीं की है।
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कहने को वृन्दावन धार्मिक नगरी है और भगवान के भजन को आयीं ये बंगाली विधवाओं के साथ हो रहे इस प्रकार के अमानवीय कृत्य पर कोई भी कथा वाचक या धर्माचार ने मानवता के नाते अंतिम संस्कार के लिए कोई व्यवस्था तक बनाने में पहल नहीं की है।
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इसके बाद हम चलते हैं दूध पीने वाली घटना पर जब जिब्रील मुहम्मद को दूध और शराब से भरा गिलास देते हैं तो मुहम्मद दूध को स्वीकार करते हैं और शराब से इंकार करते हैं इस पर जिब्रील कहतें हैं की शराब को अस्वीकृत कर निश्चय ही आपने धर्माचार का परिचय दिया है
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जैसे शब्द, मेरे आगे नाच उठते | हमें जब कोई समझाता है सौहार्द्र की बातें, या अली....! जय बजरंग बली....! कानों में गूंजने लगते | हमें अब मत समझाओ पापाचार और धर्माचार की बातें, देखा हूँ, गरीबों को नारायण बन दरवाजे-दरवाजे रिरिहा करते |
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आज हमारे भीतर जो मोह है, संस्कृति और कला के नाम पर जो आसक्ति है, धर्माचार और सत्यनिष्ठा के नाम पर जो जड़िमा है, उसमें का कितना भाग तुम्हारे कुंठनृत्य से ध्वस्त हो जाएगा, कौन जानता है! मनुष्य की जीवन-धारा फिर भी अपनी मस्तानी चाल से चलती जाएगी।