पिछले 45 सालों से राज्य में जो धर्म स्वातंत्र्य अधिनियम 1968 अस्तित्वस में है उसमें धर्म परिवर्तन से पहले जिला मजिस्ट्रे ट से लिखित में अनुमति लेने की कोई जरूरत नहीं होती थी.
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लिहाजा, उसने धर्म स्वातंत्र्य विधेयक 2006 में ऐसे कई प्रावधान किए हैं जो न सिर्फ धर्मांतरण पर लगाम लगाएंगे, बल्कि व्यक्ति के धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार को भी चुनौती देते हैं.
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धर्म स्वातंत्र्य कानून को और भी कठोर बनाने के पीछे भाजपा का तर्क है कि कुछ संस्थाएं विदेशी चंदे के दम पर जबरन और लालच देकर धर्म परिवर्तन कराने के काम में लगी हुई है.
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1968 के धर्म स्वातंत्र्य विधेयक की बात करें तो, इस विधेयक के अंतर्गत जबरन, लालच देकर या जालसाजी से धर्मांतरण गैरकानूनी बनाया गया था और साबित होने पर इसमें सजा का भी प्रावधान था.
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दर असल इस की मूल जड़ हमारी तथाकथित सेकुलर वोट बैंक राजनीति है....और मेडम जी महिमा भी. जिसके चलते राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश आदि राज्य सरकारों द्वारा पारित धर्म स्वातंत्र्य विधेयकों पर हमारी केंद्र की कोंग्रेस सरकार अड़ंगे लगाकर बैठी है.
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पर धर्म स्वातंत्र्य का अर्थ यदि लोक सेवा, सहिष्णुता, समाज के लिए व्यक्ति का बलिदान, नेकनीयती, शरीर और मन की पवित्रता है तो इस सभ्यता में धर्माचरण की जो स्वाधीनता है, और देश को उस के दर्शन भी नहीं हो सकते।
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सन 1979 में संसद सदस्य श्री ओमप्रकाश त्यागी जी ने संसद में धर्म स्वातंत्र्य विधेयक प्रस्तत किया था जिसके अनुसार छल, छद्म, भय आर प्रलोभन द्वारा किसी का धर्म छीनने को अपराध घोषित करने का प्रावधान था | तब मदर टेरेसा ने तत्कालीन प्रधान मंत्री श्री मोरारजी देसाई को जो पात्र लिखा था वो उनके सेवा कार्यों के ऊपर का लुभावना पर्दा उठाकर वास्तविक भावना को नंगा कर देने वाला है |
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धर्म की स्वतंत्रता का अर्थ अगर पुरोहितों, पादरियों, मुल्लाओं की मुफ्तखोर जमात के दंभमय उपदेशों और अंधविश्वास जनित रूढ़ियों का अनुसरण है, तो निस्संदेह वहां इस स्वतंत्रता का अभाव है, पर धर्म स्वातंत्र्य का अर्थ यदि लोक सेवा, सहिष्णुता, समाज के लिए व्यक्ति का बलिदान, नेकनीयती, शरीर और मन की पवित्रता है, तो इस सभ्यता में धर्माचरण की जो स्वाधीनता है, और किसी देश को उसके दर्शन नहीं हो सकते।