और साहित्य भी है, चाहे वों वेद है, रामायण है, या महाभारत है, वों धार्मिक मूल्य के अलावा भी राजनीतिक, और सांस्कृतिक महत्व की है।
22.
समानता, स्वाधीनता, भ्रातृत्व, भाईचारा, प्रेम, करुणा ये सारे बहुत पुराने धार्मिक मूल्य हैं और एक खास तरह की परिस्थितियों में ये लोकतंत्र में नजर आते हैं.
23.
कुछ लेखक समाज को केवल बदलने के लिए लिखते हैं और ये बदलने की भावना जो क्रांतिकारी कहलाती है, यहां क्रांति कोई धार्मिक मूल्य नहीं है, मानवीय मूल्य है, सामाजिक मूल्य है.
24.
-अनुच्छेद 16 इस ट्रेलर एक कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त धार्मिक मूल्य वर्ग के नहीं है धर्म को न तो अवैध रूप लंबे, और न ही है sittenverletzend में अनुमति के घरेलू व्यायाम है.
25.
में एक ईसाई देश हो गया जब कीव के राजकुमार व्लादीमीर ने इस नये धर्म को अपनाया; इस ऐतिहासिक घटना ने रूस के रूढ़िवादी (ऑर्थोडॉक्स) चर्च (रशियनऑर्थोडॉक्सचर्च) की आधारशिला रखी जो कि अभी भी देश में एक महत्वपूर्ण धार्मिक मूल्य वर्ग है।
26.
अक्सर भारत में धर्म और संस्कृति का ऐसा घालमेल हुआ है कि साम्प्रदायिक लोग तमाम सांस्कृतिक मूल्यों को धार्मिक मूल्य प्रदर्शित करते हुए वैसे ही साम्प्रदायिकता का औचित्य सिद्ध करने का प्रयास करते हैं जैसे विवेकानन्द की छाप का झंडा उठा कर आज मोदी साम्प्रदायिकता उत्थान में लगे हैं।
27.
जहां तक उपदेश और शिक्षा का सवाल है, केवल खोखले शब्दों और विवरणों से किसी के दिल में दूसरे धर्मों के प्रति आदर भाव नहीं उत्पन्न किया जा सकता, जब तक मनुष्य यह महसूस नहीं करे कि उसके धार्मिक मूल्य और अन्य धार्मिक मूल्यों का भी अंतिम लक्ष्य एक ही है।
28.
कुछ धार्मिक मूल्यों के अलावे भी (हालांकि धार्मिक मूल्य भी किसी या इसी तर्क पर ही रहे होंगे) अमरीका, कनाडा और अनेकों पश्चिमी देशों में इसे preventative medicine (सुरक्षात्मक उपचार) माना गया और एक बड़े अनुपात में बच्चों का जन्म के समय Circumcision किया जाता रहा है.
29.
यह भले ही देखने में सामान्य कार्य लगता हो परन्तु हिन्दू विश्वास के अंतर्गत इसका आध्यात्मिक एवं धार्मिक मूल्य है, तार्किकों को भले ही अटपटा लगे, परन्तु उन्हें इस बात पर सहमत होना पड़ेगा कि सिर्फ बौद्धिक होकर अथवा तर्क का सहारा लेकर इस समस्या का समाधान नहीं हो सकता.
30.
एक चीज नोट करने की है कि मनुष्य स्वभाव से बहुत स्वार्थी और लालची है, वह अपने धर्म की शिक्षाओं, नियमों, मर्यादाओं का पालन वहीं तक करता है जब तक वे स्वार्थ सिद्धि में आढ़े नहीं आती, अन्यथा वह सामान्यतया सारे धार्मिक मूल्य, मर्यादा, नियमों की रोज धज्जियां उड़ाता है.