वही गीली लकडियाँ उसी शहतूत की, धूआँ दे रही हैं,शायद, और ये वजह है,मेरे आँसुओं की और मैं फ़िर सोचता हूँ, एक दम तन्हा, क्यों रोईं थीं तुम उस दिन...........!
22.
मेरे वीरानों को घेरा है इसने एक गूँज बनकर मेरे हृदय को भेदा है इसने एक शूल बनकर, नज़र जहाँ तक जाती है फैली हुई है यह धूआँ बनकर ।
23.
वही गीली लकडियाँ उसी शहतूत की, धूआँ दे रही हैं,शायद, और ये वजह है,मेरे आँसुओं की और मैं फ़िर सोचता हूँ, एक दम तन्हा, क्यों रोईं थीं तुम उस दिन...........! बेहतरीन अभिव्यक्ति
24.
वही गीली लकडियाँ उसी शहतूत की, धूआँ दे रही हैं,शायद, और ये वजह है,मेरे आँसुओं की और मैं फ़िर सोचता हूँ, एक दम तन्हा, क्यों रोईं थीं तुम उस दिन...........! अंतर्मन को उद्देलित करती पंक्तियाँ, बधाई....
25.
लाल सलाम एक ज़माना था बहुत गुस्सा आता था दिल करता था के धूआँ उगलने वाली चिमनियों को बुझा दूं उस फॅक्टरी में आग लगा दूं सारी लाचारी मिटा दूं फिर, फिर मुझे नौकरी मिल गयी |
26.
दो मुर्गी थी चार बकरियां इक थाली इक लोटा था कच् चा चूल् हा धूआँ भरता खिड़की ना वातायन था एक ओढ़नी पहने धरणी बरखा टपके कुटिया पर एक गाँव में देखा मैंने सुख को बैठे खटिया पर।
27.
वही गीली लकडियाँ उसी शहतूत की, धूआँ दे रही हैं,शायद, और ये वजह है,मेरे आँसुओं की और मैं फ़िर सोचता हूँ, एक दम तन्हा, क्यों रोईं थीं तुम उस दिन...........! सचमुच कुछ यादें कैसे आँखें भिगो जाती है ।
28.
चवन्नी में सिटी बस पूरे नउवाबी शहर का सैर करती थी, और एक कप चाय तीन पत्ती पान की गिलौरी मुँह में डाले रॉथमैन्स / ट्रिपलफाइव (555 स्टेट एक्सप्रेस) होंठों से लगाए धूआँ उड़ाने के बाद कुल एक रूपए का ही खर्च बैठता था।
29.
नहीं कुछ और हो जाऊँ उलझन उलझन तैर रहा हूँ जाने क्या से क्या हो जाऊँ कभी सोचता धूप बनूँ... जब हम जवां थे.....तब रोमांस में भी रोमांच था.....!!! यादें.....!!! “यू उठा तेरी यादो का धूआँ जैसे चिराग बुझा हो अभी अभी”॥ क्यों याद आता है,वो गुज़रा ज़माना जो नामुमकिन है,लौट के वापस आना | वो ठंडी...
30.
पति के साथ कंधा मिलाना तो दूर दिन के उजाले में रूबरू बात करना तक नसीब नहीं होता था, धूआँ, चूल्हा-चौका ही उनकी जिंदगी थी, बच्चों की तरफ से उन्हें कोई उपाधि नहीं दी जाती थी, श्रृंगार के नाम पर नई साड़ी और मेहँदी ही काफी थी, उनके जीवन का एक ही ध्येय था अपने घर को संजो के रखना................