उन्होंने हिंदी की व्यापकता को तो स्वीकारा, किंतु उसकी सर्वाधिक वैज्ञानिक और ध्वन्यात्मक लिपि को उपयुक्त नहीं मानते हुए उसके स्थान पर रोमन लिपि अपनाने की सलाह दे डाली।
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प्रमोद जोशी का लेख ' मॉनसून क्यों और मानसून क्यों नहीं?' उन्होंने इस लेख में कहा है कि देवनागरी ध्वन्यात्मक लिपि है तो हमें अधिकाधिक ध्वनियों को उसी रूप में लिखना चाहिए।
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यह क्रम इतना तर्कपूर्ण है कि अन्तरराष्ट्रीय ध्वन्यात्मक संघ (IPA) ने अन्तरराष्ट्रीय ध्वन्यात्मक लिपि के निर्माण के लिये मामूली परिवर्तनों के साथ इसी क्रम को अंगीकार कर लिया ।
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प्रचलित वर्णमालाओं के उपर्युक्त दोष के परिहार के लिए भाषाविज्ञान के ग्रंथों में रोमन लिपि के आधार पर बनी हुई अंतरराष्ट्रीय ध्वन्यात्मक लिपि (इंटरनैशनल फ़ोनेटिक स्क्रिप्ट) का प्राय: प्रयोग किया जाने लगा है।
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दूसरी बात यह कि देवनागरी पूर्णतः एक ध्वन्यात्मक लिपि है, इसलिए यह ज़रूरी नहीं कि इसमें लिखे जाने वाले शब्द बिल्कुल वैसे ही हों जिस तरह वे अन्य भाषा जैसे अंग्रेज़ी में लिखे जा रहे हों.