लेकिन समकालीन परिदृश्य में जो नये ढंग का रीतिवाद प्रचलित है, उससे मुक्त वह इस वजह से ही रह सके हैं कि उनकी अपनी एक जमीन है, ग्राम, समाज और जनपद की वेदना और वैभव की पुकार है केशव की कविता।
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ख़ासतौर पर उन्होंने चित्र-फलक के ‘ आभ्यान्तर के विभाजन ‘ में, परम्परागत ‘ ज्यामितिक-संतुलन ‘ को एक नितान्त नई प्रविधि से तोड़कर, जो नये ढंग का ‘ संयोजन ‘ गढ़ा, वह ' समकालीन ' भारतीय कला में उनका अपना ‘ संरचनागत ‘ आविष्कार है और ‘ अवदान ‘ भी है।