इस प्रक्रिया में नानात्व, का, जो अविद्याकृत है, विनाश होता है, और आत्मा, जो ब्रह्मस्वरूप है, उसका साक्षात्कार होता है।
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हिन्दू धर्म की विचित्र विषमता, संकीर्णता, तथा नानात्व और अन्तर्विरोधों के बीच यह एक सूक्षम श्रंखला है, जो सबको समन्वित करती है.
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स्पष्ट है कि वे धर्म, संस्कृति, राजनीति, समाज और उपासना के हर स्तर पर नानात्व का विखंडन करके एकलता की स्थापना करना चाहते थे।
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यह जीवात्मा रूप प्राण नानात्व प्राप्त प्राणों को संगृहीत कर लेता है तो वह उन सब प्राणों के साथ ऊर्ध्वदिशा में उत्क्रमण करने वाला वामन (जैमिनीय ब्राह्मण ३.
25.
एक ब्रह्मतत्त्व जो निरामयरूप और नानात्व से रहित है उसमें युक्त क्या और अयुक्त क्या? जब तक इच्छा-अनिच्छा और वाञ्छित-अवाञ्छित यह दोनों बातें स्थित हैं अर्थात् फुरते और क्षोभ करते हैं तबतक सौम्यताभाव नहीं होता ।
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और उनकी भावनाओं का धार्मिक केन्द्र रही है. यह परम्परागत धार्मिक पवित्रता और शिक्षा का केन्द्र रही है.हिन्दू धर्म की विचित्र विषमता,संकीर्णता,तथा नानात्व और अन्तर्विरोधों के बीच यह एक सूक्षम श्रंखला है,जो सबको समन्वित करती है.केवल सनातन हिन्दुओ के लियी ही नही बौद्धो और जैनो के लिये भी यह स्थान बहुत महत्व का है.