भूख, गरीबी, लाचारी, बेबसी का ये स्वरुप देख सहम जाते हैँ हम लोग-ना जाने कब, मानव समाज से ऐसे दुख दूर होँगेँ?-लावण्या * जी.के. अवधिया द्विवेदी जी, मीडिया के लिये तो किसी नामी आदमी का छींकना भले ही खबर हो सकता है पर गरीबों का मरना नहीं, वे तो मरते ही रहते हैं, मीडिया को भला उनसे क्या लेना देना।