| 21. | तीरथ के पय्र्यटन में ठान्यों तब निज चित्त।।
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| 22. | उठाएं उनको उस स्थिति से निज प्राण पण
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| 23. | भींगता रहूँ निज आँगन मैं बरसातों में ।
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| 24. | जाना कभी ना, निज के स्वरूप को।।
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| 25. | निज उद्धार पंथ नहिं सूझत सीस धुनत पछिताई।
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| 26. | अब जा कर किससे कहूँ, निज पीलापन-हाल ॥
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| 27. | कोमल पद पंकज धूरि धूसर निज जूती अपने
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| 28. | ' प्रगटी गिरिन्ह बिबिधि मनि खानी।'सागर निज मरजादां रहहीं।
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| 29. | पर, खोल आज निज अंतःपुर के पट गोपन
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| 30. | कहउँ नामु बड़ राम तें निज बिचार अनुसार,)[೩]
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