इस साकारी, उस सूक्ष्म लोक और उस निराकारी दुनिया (परमधाम) की सब खोज खबर रहती है उसे. वही बीज रूप है इस सृष्टि का.
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आत्मा का निराकारी स्वरूप मन (आत्म), चित (परात्म), सुरत, बुधि, मति आदिक की जानकारी सिख धर्म के मूल सिख्याओं में दी जाती है।
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परमात्मा का निर्गुण निराकारी रूप मुखरित होता है दो ॐ ध्वनियों के बी च. प ्रणव है ॐ अर्थात वह ध्वनी जिसे परमात्मा प्रसन्न होतें हैं, वेदों का सार भी यही ध्वनी ॐ है.
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थेंक यु बाबा यही बातचीत बुद्धि को निराकारी दुनिया ब्रह्म लोक मैं ले आती है जहां मैं आत्मा अपने बाप से ज्ञान का प्रकाश लेती हूँ शक्ति लेती हूँ. सकाश लेती हूँ. वहि तो मेरा भी पर्मानेंट एड्रेस है.
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यही शब्द को निराकारी दृष्टिकोण में लिया जाता है, जिसके अनुसार कोई भी जीव आत्मा या मनुष्य अपनी आत्मा की ज्ञान की भूख, अपनी आत्मा को समझने और हुकम को बूझने की भूख गुरु घर में आकर किसी गुरमुख से गुरमत की विचारधारा को सुनक
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यही शब्द को निराकारी दृष्टिकोण में लिया जाता है, जिसके अनुसार कोई भी जीव आत्मा या मनुष्य अपनी आत्मा की ज्ञान की भूख, अपनी आत्मा को समझने और हुकम को बूझने की भूख गुरु घर में आकर किसी गुरमुख से गुरमत की विचारधारा को सुनकर / समझकर मिटा सकता है।
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सिखों के धर्म ग्रंथ में “लंगर” शब्द को निराकारी दृष्टिकोण से लिया गया है, पर आम तौर पर “रसोई” को लंगर कहा जाता है जहाँ कोई भी आदमी किसी भी जाति का, किसी भी धर्म का, किसी भी पद का हो इकट्ठे बैठ कर अपने शरीर की भूख अथवा पानी की प्यास मिटा सकता है।
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-उस निराकारी ईश्वर को दिन में एक बार अवश्य धन्यवाद दो जिसने आज का दिन सुदिन बना दिया..हमें स्वस्थ रखा..मानसिक रूप से चैतन्य रखा और किसी के लिये मन में शुभ-विचार लाने के लिये प्रेरित किया.इति शुभम. जो दिया सो अपना...जो बचा लिया सो सपना एक नौजवान, जो कि विश्वविद्यालय का छात्र था, एक शाम अपने प्रोफ़ेसर के साथ पैदल घूमने निकला।
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सिखों के धर्म ग्रंथ में “ लंगर ” शब्द को निराकारी दृष्टिकोण से लिया गया है, पर आम तौर पर “ रसोई ” को लंगर कहा जाता है जहाँ कोई भी आदमी किसी भी जाति का, किसी भी धर्म का, किसी भी पद का हो इकट्ठे बैठ कर अपने शरीर की भूख अथवा पानी की प्यास मिटा सकता है।
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दूसरों से कर्म कराते हैं (शंकर के द्वारा) और अपनी संपन्न शक्ती और संपन्न कार्य को विष्णु के द्वारा प्रत्यक्ष करते है जो स्त्री-पुरुष पवित्र के संस्कारों के मेल का मूर्त रूप बन जाता है | यह सब कुछ करने-कराने के लिए सदा निराकारी शिव को मनुष्य तन चाहिए | इसीलिए १०० साल के संगम युग में उनको दो रथों की दरकार है | रथ अर्थात निमित्त बना हुआ शरीर | वे दो रथ हैं: