इसके बावजूद पुस्तकालयों में खरीद का आधार न हो तो हिन्दी के पंचान्बे प्रतिशत प्रकाशक एक साथ एक मिनट में टें बोल धराशायी हो जायें! अमूल्य लेखन-कर्म को इस पुस्तक-बाजार के गणित ने निर्मूल्य बनाकर छोड़ दिया है!
22.
क्या ये काम सरकारों का नहीं की नियम बनाये तो कडाई से पालन भी होने चाहिए न की ले दे कर बस सेर्तिफिकाते प्रदान कर जानों को निर्मूल्य गवाने देने देनी चहिये. सड़ी गली व्यवस्था से क्या उम्मीद करे.
23.
‘‘ संसार के लोगों, परमात्मा की ओर से सुखों की निर्मूल्य भेंट! दुखों से मुक्त होने का अचूक अवसर! आज अर्धरात्रि में, जो भी अपने दुखों से मुक्त होना चाहता है, वह उन्हें कल्पना की गठरी में बांध कर गांव के बाहर फेंक आवे और लौटते समय वह जिन सुखों की कामना करता हो, उन्हें उसी गठरी में बांध कर सूर्योदय के पूर्व घर लौट आवे।