प्रजातीय दृष्टि से इन समूहों में नीग्रिटो, प्रोटो-आस्ट्रेलायड और मंगोलायड तत्व मुख्यत: पाए जाते हैं, यद्यपि कतिपय नृतत्ववेत्ताओं ने नीग्रिटो तत्व के संबंध में शंकाएँ उपस्थित की हैं।
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प्रजातीय दृष्टि से इन समूहों में नीग्रिटो, प्रोटो-आस्ट्रेलायड और मंगोलायड तत्व मुख्यत: पाए जाते हैं, यद्यपि कतिपय नृतत्ववेत्ताओं ने नीग्रिटो तत्व के संबंध में शंकाएँ उपस्थित की हैं।
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नीग्रिटो-नीग्रिटो प्रजाति भारत की प्राचीनतम प्रजाति है जो अपने मूल स्थान मैलेनेशिया से असम, म्यांमार, अण्डमान-निकोबार और मालाबार में फैली, किन्तु अब इसके अवशेष हमें भारत के मुख्य भाग पर प्राप्त नहीं होते।
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सुदूर दक्षिण के वनों के कडार और यूराली लोगों में यदाकदा छोटे कद, घुंघराले बाल और नीग्रो आकृति के लोग देखे जाते हैं, जो वास्तव में भारत में नीग्रिटो प्रजाति के अवशेष को स्पष्ट करते हैं।
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जेएच हटन और बीएस गुहा ने 1931 के जनगणना संक्रिया के आधार पर शारीरिक मानकों पर वर्गीकरण कर भारतीय जनसंख्या को 6 प्रजातीय समूहों में बांटा-नीग्रिटो-असम के अंगामी नागा, कोचीन, ट्रावोनकोर और राजमहल पहडियों की जनजातियां।
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बंगाल की खाड़ी, मलेशिया प्राय: द्वीप, फिजी द्वीपसमूह, न्यूगिनी, दक्षिण भारत और दक्षिणी अरब में नीग्रिटो अथवा आंशिक नीग्रो लोगों की उपस्थिति यह मान लेने को प्रेरित करती है कि किसी पूर्व-ऐतिहासिक काल में नीग्रिटो लोग एशिया महाद्वीप के बहुत बड़े भाग विशेषकर दक्षिणी भाग को घेरे हुए थे।
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बंगाल की खाड़ी, मलेशिया प्राय: द्वीप, फिजी द्वीपसमूह, न्यूगिनी, दक्षिण भारत और दक्षिणी अरब में नीग्रिटो अथवा आंशिक नीग्रो लोगों की उपस्थिति यह मान लेने को प्रेरित करती है कि किसी पूर्व-ऐतिहासिक काल में नीग्रिटो लोग एशिया महाद्वीप के बहुत बड़े भाग विशेषकर दक्षिणी भाग को घेरे हुए थे।