आँखों को किसी भी प्रकार कि क्षति जिसके कारण कोई पदार्थ नेत्रकाचाभ द्रव में पहुँच जाए, प्लवमान पिंड उत्पन्न का सकता है.
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जीवन के बाद के चरणों में ही, जब नेत्रकाचाभ द्रव दृष्टिपटल से अलग होता है, येह प्रत्यक्ष रूप से दीखता है.
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आँखों को किसी भी प्रकार कि क्षति जिसके कारण कोई पदार्थ नेत्रकाचाभ द्रव में पहुँच जाए, प्लवमान पिंड उत्पन्न का सकता है.
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नेत्रगोलक की तीसरी और सबसे बड़ी गुहा को नेत्रकाचाभ या विट्रीयस चैम्बर कहा जाता है, जो नेत्रगोलक के लगभग 80% भाग में होती है।
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यह आमतौर पर सूजन के साथ जुड़ा हुआ है, खास तौर पर जब नाभिक के छोटे टुकड़े या हिस्से नेत्रकाचाभ में पहुँच जाते हैं.
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वे अधिकतर लोगों की आँखों में मौजूद होते हैं और छोटे छोटे भ्रूण सम्बंधित अवशेषों के नेत्रकाचाभ द्रव में एकत्र होने से बनते हैं.
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वे अधिकतर लोगों की आँखों में मौजूद होते हैं और छोटे छोटे भ्रूण सम्बंधित अवशेषों के नेत्रकाचाभ द्रव में एकत्र होने से बनते हैं.
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नेत्रगोलक की तीसरी और सबसे बड़ी गुहा को नेत्रकाचाभ या विट्रीयस चैम्बर कहा जाता है, जो नेत्रगोलक के लगभग 80 % भाग में होती है।
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प्लवमान पिंड विभिन्न आकार, माप,स्थिरता,पारदर्शिता, एवं गतिशीलता वाले निक्षेप होते हैं, जो नेत्र के नेत्रकाचाभ द्रव में पाए जाते हैं और सामान्य रूप से पारदर्शी होते हैं.
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प्लवमान पिंड विभिन्न आकार, माप,स्थिरता,पारदर्शिता, एवं गतिशीलता वाले निक्षेप होते हैं, जो नेत्र के नेत्रकाचाभ द्रव में पाए जाते हैं और सामान्य रूप से पारदर्शी होते हैं.