ऐसे में यह समुदाय अपने ऊपर अनुशासन की किसी भी व्यवस्था को संगठित शक्ति की बदौलत नकारे तो शायद सरकार उसके सामने टिकी न रह सकेगी, लेकिन अपने दबदबे के अहंकार से परे होकर नैतिक औचित्य की कसौटी पर वकील खुद को कसेंगे तो अपने को खरा साबित नहीं कर सकते।
22.
प्रजातियों को “ सौंदर्य और नैतिक औचित्य के लिए ; मानव कल्याण के लिए आवश्यक उत्पादों तथा सेवाओं के प्रदाता के रूप में जंगली प्रजातियों की महत्ता ; विशिष्ट प्रजातियों का मूल्य पर्यावरणीय स्वास्थ्य सूचक रूप में या पारिस्थितिकी प्रणालियों के कार्य करने के लिए मूल तत्त्व प्रजातियों का महत्व ; और वन्य जीवों के अध्ययन से हासिल वैज्ञानिक सफलताओं ” के लिए बचाया जाना चाहि ए.
23.
राज्यपाल ने जिस आधार पर कहा था कि वैधानिक रूप से ऐसा कोई तरीका नहीं है जिससे राज्य के सदन के वर्तमान स्वरूप में सत्ता बनाने के लायक कोई ऐसा गठबंधन तैयार हो सकता हो जो नैतिक औचित्य की कसौटी पर खरा हो जिससे अंदेशा है कि अगर ऐसी सूरत में किसी को सरकार बनाने के लिये आमंत्रित किया जाये तो खरीद फरोख्त होगी जिससे लोकतांत्रिक राज्य की मर्यादा तार-तार हो जायेगी।
24.
तथ्य यह है, यहाँ तक की, अनैतिक सरकारें भी कुछ हद तक न्याय एवं व्यवस्था बनाये रखने को अनिवार्य समझती हैं या तो स्वभाव या परंपरा के कारण और अपने अधिकारों का कुछ हद तक नैतिक औचित्य ठहराने के लिए, जैसा कि फ्रांस के सम्राट ने 'राजा के ईश्वरीय अधिकार' की स्तुति की थी, ऐसे ही सोवियत रूस के आधुनिक तानाशाहों ने अपने शासन को अपने अधीनस्थों की नजर में उचित ठहराने के लिए धन खर्च किया था।
25.
औपनिवेशिक, वैचारिक और नैतिक औचित्य स्थापन के प्रतिरोध की दृष्टि से “ देश की बात ” की भूमिका में पाण्डेय जी ने आज के अमरीकी साम्राज्यवाद द्वारा स्वतंत्रता, लोकतंत्र और मानवाधिकार की स्थापना के नाम पर ईराक, अफगानिस्तान और दीगर तीसरी दुनिया के देशों में अमरीकी हमलों के हवाले से दिखलाया है कि कैसे पुराने उपनिवेशवाद और आज के साम्राज्यवाद के वैचारिक और नैतिक औचित्य स्थापन के पाखंडी तौर-तरीके में एक अद्भुत निरंतरता है.
26.
औपनिवेशिक, वैचारिक और नैतिक औचित्य स्थापन के प्रतिरोध की दृष्टि से “ देश की बात ” की भूमिका में पाण्डेय जी ने आज के अमरीकी साम्राज्यवाद द्वारा स्वतंत्रता, लोकतंत्र और मानवाधिकार की स्थापना के नाम पर ईराक, अफगानिस्तान और दीगर तीसरी दुनिया के देशों में अमरीकी हमलों के हवाले से दिखलाया है कि कैसे पुराने उपनिवेशवाद और आज के साम्राज्यवाद के वैचारिक और नैतिक औचित्य स्थापन के पाखंडी तौर-तरीके में एक अद्भुत निरंतरता है.
27.
तथ्य यह है, यहाँ तक की, अनैतिक सरकारें भी कुछ हद तक न्याय एवं व्यवस्था बनाये रखने को अनिवार्य समझती हैं या तो स्वभाव या परंपरा के कारण और अपने अधिकारों का कुछ हद तक नैतिक औचित्य ठहराने के लिए, जैसा कि फ्रांस के सम्राट ने ' राजा के ईश्वरीय अधिकार ' की स्तुति की थी, ऐसे ही सोवियत रूस के आधुनिक तानाशाहों ने अपने शासन को अपने अधीनस्थों की नजर में उचित ठहराने के लिए धन खर्च किया था।