| 21. | न चाति स्वप्नशीलस्य जाग्रतो नैव चार्जुन ॥ भावार्थ:
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| 22. | गरूड पुराण: “” यदा सिंहगतो जीवौ नैव कल्याणमाचरेत्।
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| 23. | अश्वं नैव गजं नैव व्याघ्रं नैव च
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| 24. | अश्वं नैव गजं नैव व्याघ्रं नैव च
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| 25. | अश्वं नैव गजं नैव व्याघ्रं नैव च
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| 26. | गते शोको न कत्र्तव्यो भविष्यं नैव चिनतयेत्।
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| 27. | अनित्यानि शरीराणि विभवो नैव शाश्वत: ।
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| 28. | प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं॥ न जानामि योगं जपं नैव पूजां।
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| 29. | न जानामि योगं जपं नैव पूजां।
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| 30. | अतितृष्णा न कर्तव्या तृष्णां नैव परित्यजेत्।
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