युगों से भारत के हस्तशिल्प जैसे कि कश्मीरी ऊनी कालीन, ज़री की कढ़ाई किए गए वस्त्र, पक्की मिट्टी (टेराकोटा) और सेरामिक के उत्पाद, रेशम के वस्त्र आदि, ने अपनी विलक्षणता को कायम रखा है।
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जबकि ट्राईबल और फॉक के राज्य संग्रहालय में जनजाति समूहों द्वारा निर्मित पक्की मिट्टी की कलाकृतियां, धातु शिल्प, लकड़ी शिल्प, पेटिंग, आभूषण, मुखौटों और टेटुओं को दर्शाया गया है।
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भूतल पर बने स्नानागार, जिन में भट्टियों में सेंके गये पक्की मिट्टी के पाईप नलियों के तौर पर प्रयोग किये गये थे तथा 7-10 फुट चौडी और धरती से दो फुट अन्दर नालियाँ बनी थीं।
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20 वीं शताब्दी के अस्सी वाले दशक में चीनी सामाजिक विज्ञान अकादमी के पुरातात्विक अनुसंधान प्रतिष्ठान ने उत्तर क्षेत्रीय सुरक्षा नगर के पश्चिमी भाग में बड़ी मात्रा में पक्की मिट्टी की मुर्तियां और उत्कृष्ट भित्ति चित्र खुदाई से उपलब्ध किए है।
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पारम्परिक रूप से इन्हें मिट्टी और भूसे को मिलाकर और प्रत्येक भाग को जोड़ने के पहले पृथक रुप से आकार देकर बनाया जाता है, आज इन वस्तुओं की लोकप्रियता के कारण कुम्हार पक्की मिट्टी की चीजों के लिए साँचों का प्रयोग कर रहे हैं।
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जब यह साधारण धातु, रंग और कड़ी मेहनत के साथ मिलती है तो यह परिवर्तित होती है, कई तरह के प्रकृति से प्रेरित शोख रंगीन रूपों या ज्यामितीय बनावटों में जो कि छोटे केन के डिब्बों के ऊपर या पक्की मिट्टी की लघु मूर्ति के रूप में पाई जाती हैं।
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इसके अतिरिक्त पक्की मिट्टी से निर्मित विभिन्न प्रकार की सामग्री उत्खनन से प्राप्त हुई है जिनमें झांवा (पैरों से मिट्टी साफ करने का साधन), सिर खुजाने का यंत्र, अर्चना पात्र, दीपक, गेंद, पहिये, खपरैल, पासे, धूपदान और ठप्पा मोहरें आदि प्रमुख हैं।
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६. पक्की मिट्टी वाली औरतें सिन्दूर,पाजेब का पर्याय बन लांघती हैं दहलीज गढ़ती हैं नये आकार में रोज़ खुद को चक्की पर पिसती बारीक और बारीक चुल्हे पर सिकती दोनों पहर भरती बर्तन भर पानी सी झरती ढुल जाती आखरी बून्द तक कई कई बार धुली चादर सी बिछ जाया करती बिस्तर पर।
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कितना कर्मठ है यह विकास भी-पक्की मिट्टी का, पूजा को कोई रुकावट न मानकर बिल्कुल अनदेखा, अनचीन्हा छोड़कर हर सुबह चला जाता है और जब शाम को लौटता है तो थकान से पस्त, टूटा हुआ-सा, बस खाने भर को वे दोनों एक साथ निकलते हैं।
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इसके अलावा पत्थर व ईंटों से बनी दीवार, चबूतरे, नाली, लौह निर्मित दैनिक उपयोग की वस्तुएं जैसे कीलें, तेलकुप्पी, हंसिया, बरछी, भाला, तीर छुरी, कीमती पत्थरों के मनके, मिट्टी के मनके, मृदभांड के टुकड़े, पक्की मिट्टी के बने गोलादार आदि शामिल है।