रवींद्रनाथ ठाकुर ने सर्जनात्मक स्तर पर और साहसपूर्वक और शक्ति बटोरकर और इसके लिए क़ीमत चुकाकर धर्म, समाज और मनुष्य को उसके संकीर्ण दायरे से निकालकर व्यापक परिवृत्त प्रदान किया था ।
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तब पेड़-पौधे, जंगली घास व लंबे-लंबे बाॅस से परिवृत्त इस स्थान पर धीवर, मल्लाह, कोल और आदिवासी लोगों द्वारा स्वयं के रक्षार्थ एक काली पीठ की स्थापना की गयी।
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यह मन्दिर 875 फुट लम्बे और 540 फुट चौड़े प्रांगण में बनाया गया है, इस मन्दिर का अहाता एक दीवार से परिवृत्त है, और इसका मुख्य प्रवेश द्वार पूर्व में है।
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' शारदीया' के सारे नाटकों में समस्या को व्यापक परिप्रेक्ष्य में रखकर देखने का आभास अवश्य है, परंतु समस्या मात्र का परिवृत्त इतना छोटा है कि वह किसी व्यापक सत्य का आधार नहीं बन पाती।
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इसमें सन् 1857 की क्रान्ति और कानपुर के सामरिक महत्व के साथ-साथ कानपुर के औद्योगिक विकास, बलवन्त नगर और अन्य कस्बों के विकास-निर्माण का रूपायन अपने पूरे परिवृत्त में उत्कर्ष और ऊंचाई लिए हुए है।
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इसमें सन् 1857 की क्रान्ति और कानपुर के सामरिक महत्व के साथ-साथ कानपुर के औद्योगिक विकास, बलवन्त नगर और अन्य कस्बों के विकास-निर्माण का रूपायन अपने पूरे परिवृत्त में उत्कर्ष और ऊंचाई लिए हुए है।
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उनकी कविता का गहरा सांगठनिक तनाव इस बात का द्योतक है कि एक विस्मित ऐंद्रिकता की औपचारिक आस्वादधर्मिता का मिला-जुला समाजशास्त्र, किस तरह मानवीय परिवृत्त में, जीवन-विवेक और जीवन-यथार्थ के लोक-संपृक्त परिप्रेक्ष्य को उद्घाटित कर जाता है.
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जिनकी स्वर्ण और नील कमल के समान अति सुंदर कांति है, जो जगत को मोहित करने वाली श्री से संपन्न हैं, नित्य ललिता आदि सखियों से परिवृत्त हैं, सुंदर नील और पीत वस्त्र धारण किए हुए हैं तथा जिनके नाना प्रकार के आभूषणों से आभूषित अंगों की कांति अति मधुर है, उन अव्यय, सुललित, युगलकिशोररूप श्री राधाकृष्ण के हम नित्य शरणापन्न हैं।
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आकाशमण्डल कभी निविड अन्धकार से आच्छन्न हो जाता है, कभी सुवर्णद्रव के समान उज्जवल चाँदनी आदि से उदभासित हो उठता है, कभी मेघरूपी नीलकमल की माला से परिवृत्त हो जाता है, कभी गम्भीरतर बादलों की गर्जना से परिपूर्ण हो जाता है, कभी मृककी नाईं सुनसान हो जाता है, कभी तारों की पंक्तियों से रंजित हो जाता है, कभी सूर्य की किरणों से विभूषित हो जाता है, कभी चाँदनी रूप आभूषण से अलंकृत हो उठता है और कभी पूर्वोक्त कोई भी पदार्थ उसमें नहीं रहते।