इसका उभरा हुआ सिरा दृष्टि को सुधारने के लिये साफ कांच का बना हुआ था-लेकिन यह विचार अव्यावहारिक था क्यौंकि इसके कारण पलक झपकना असंभव था.
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आँखें और पलकें घनिष्ट रुप से संबंधित हैं, सामान्य रुप से पलक झपकना एक अनैच्छिक क्रिया है, पर इस क्रिया को हम इच्छानुसार भी कर सकते हैं।
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आज अगर आए प्रियतम-कुछ पलक झपकना देख पिया की निर्मल मूरत तुम जल उठना और देखना चकित भ्रमित आँखें वह सुन्दर फिर बतलाना कौन दीप है उज्ज्वल कितना दीप तुम जलते रहना!!
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भूल चली हैं आँखें, देखो पलक झपकना तुम क्या जानो ताप प्रीत की-दुष्कर सपना जल उठना मेरी आंखों में, जब वो आएँ मेरी चौखट पर मुझमें तुमको भी पाएँ और कहूँ क्या बात प्रीत की कठिन है कहना दीप तुम जलते रहना!!
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भूल चली हैं आँखें, देखो पलक झपकना तुम क्या जानो ताप प्रीत की-दुष्कर सपना जल उटना मेरी आंखों में, जब वो आएँ मेरी चौखट पर मुझमें तुमको भी पाएँ और कहूँ क्या बात प्रीत की कठिन है कहना दीप तुम जलते रहना!!-जया पाठक खोई राह स्वयं पा लूंगी
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सच कहा आपने जीवन एक संघर्ष हें और संघर्ष से ही कर्म जुड़ा हें अगर इन्सान या संसार का कोई भी जीव कर्म नहीं करता तो बह मृत माना जाता हें क्यों कि किसी ने सच कहा हें कि पलक झपकना भी एक कर्म हें और कर्म करना एक संघर्ष | प्रेषक-शंकर
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अब बताइये ऐसा गुरु कहां मिले? घोडे की पीठ पर सवार होने में ज्यादा से ज्यादा अनाडी आदमी को २० सेकिंड और जनक जैसे राज-पुरूष को तो पलक झपकना भी ज्यादा ही हो जायेगा! अब ये घोषणा सुन कर कौन गुरु तैयार होगा! इतना त्वरित ज्ञान लेने और देने में दोनों ही पक्षों का चेतना का स्तर क्या होगा? ज़रा कल्पना करिए!
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अब बताइये ऐसा गुरु कहां मिले? घोडे की पीठ पर सवार होने में ज्यादा से ज्यादा अनाडी आदमी को २ ० सेकिंड और जनक जैसे राज-पुरूष को तो पलक झपकना भी ज्यादा ही हो जायेगा! अब ये घोषणा सुन कर कौन गुरु तैयार होगा! इतना त्वरित ज्ञान लेने और देने में दोनों ही पक्षों का चेतना का स्तर क्या होगा? ज़रा कल्पना करिए!