ई में हमें बाद का ठुस् स तो सिमझ में आ रहिस किन् तु ऊ जो पहिले का टिंगटौंग है ऊ हमार कपाल में नहीं घुसिस ।
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पांडे बाबू को ई भी त देखने का ज़रुरत है कि बंगाल में नंदीग्राम से पहिले का कुछ हुआ ही नहीं था? ई नंदीग्राम त पराकाष्ठा है भाई पांडे बाबू.
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साले हर साल..वाय दिन कोहरा वेरी, कोहरा बेरी गाते रहते हो भर ठंडातो जहाज उडे न उडे, अफ़वाह तो गज्जबे उडता है, अभी कुछ दिन पहिले का काला बंदरवा याद है कि भूल गए हो ।
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सर्यू-अब तो मैं आपके साथ ही रहूंगी, इसलिए तिलिस्म तोड़ते समय जो कुछ कार्रवाई आप करेंगे या जो तमाशा दिखाई देगा देखूंगी मगर यदि आज के पहिले का हाल जब से आप इस तिलिस्म में आये हैं सुना देते तो बड़ी कृपा होती।
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आइये हम सभी सोंचे कि क्या हम दाना बन सकते है जो माटी मे किसी अभिप्राय को ले मिलने को तैयार है........? देखिये अन्नाजी किस दाने की बात कर रहे है और किससे कर रहे है? ये बहुत साल पहिले का भाषण है ।
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PMयो लेख मा मेरो समर्थन छ है, एकदम राम्रो लेख! पहिले का शासक र शासनसत्ता मा हालीमुहाली भएका हरुले आफ्नो हैकम गुम्ने त्रास ले देश टुक्रिने अफवाह फैलाई रहेका छन्,, पन्चे हरुले पनि भन्ने गर्थे बहुदल मा गयो भने देश मा पार्टी पार्टी बीच मारकाट हुन्छ भनेर ….गरमागरम बहस।
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यह क्षेत्र आज से नहीं, महाभारत काल, जो लगभग पांच हज़ार साल पहिले का माना जाता है, के समय भी एक पूर्ण रूप से विकसित युद्ध क्षेत्र था, जैसा कि महाभारत के द्रोण पर्व में उल्लिखित है-अयोहस्ता, शूलहस्ता दरास्तास्तंगणा खशा:, लम्वकाश्च, कुलिन्दाश्च, चिक्सिपुस्ताच सात्यकी।
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फागुन के फगुनाहट में गाँव-देहात से लेकर के शहर तक में एतना बियाह-शादी होता है की का बताएं! परबतियो काकी अपना संझली बेटी लखिया के बियाह के खातिर बहुत औगताई हुई थी! अरे भईया हम इ आज कल का बात थोड़े ना बता रहे हैं! बहुत पहिले का बात है!
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उसमे उसे शकुन मिलता है मुझे याद है आपातकाल के पहिले का समय जब जनता उस समय की विवसथा से ऊब रही थी और जय परकाश नारायण ने एक आन्दोलन चलाया उसमे छात्रो का रोल जयादा था और उन्हें जवर्दस्त समर्थन मिला उसका नतीजा यह हुया की तत्कालीन प्रधान मंत्री ने आपातकाल की घोषणा कर दी और सुधार बादी राजनेताओ को जेल में दाल दिया गया.