पर गुरु तो गुरु ही ठहरे? संघ-भक्ति का फायदा आडवाणी को नहीं मिल पाया तो पावदान बने छोटे-छोटे स्वयंसेवक की क्या विसात? ये स्वयंसेवक भागवत के सपनों को साकार करने के लिए बूथ-मेनेजर ही तो बनेंगें? इन स्वयंसेवक के लिए तो ‘ भारत माता की जय ‘ यानी ‘ ‘ ‘ भारत सरकार ‘ है. वैसे अभी भाजपा का यह असंगठित-विद्रोह है और यह कभी भी संगठित-विद्रोह का शक्ल ले सकता है?
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पिछली बार होली में घर जाने का मौका मिल गया था तो देखा कबीर गाने वाला ही कोई नही रह गया-बिज्जल को स्वर्गवासी हुए भी जमाना गुजर गया! आज समझ में आता है कि उस एक रात हम परिपक्व होने के पावदान पर अगला कदम रख देते थे! अनावश्यक संकोच को दूर भगाते थे-वह एक ऐसा रैगिंग सत्र था जो अभिभावकों के ठीक सामने और उनकी देखरेख में होता था-शब्द चित्रों के श्लेष धीरे धीरे समझ में आते जाते थे!