÷दस द्वारे का पींजरा ' में पंडिता रमाबाई मूर्तिभंजन के लिए भी प्रसिद्ध हो गयी हैं।
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÷दस द्वारे का पींजरा ' का दार्शनिक विमर्श चकित करने वाला है, पर सहज पाठ में बाधक है।
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÷दस द्वारे का पींजरा ' एक अर्थ में राजनीतिक उपन्यास है, जबकि ÷तिनका तिनके पास' में स्त्राी मुक्ति की विडम्बनाओं को जरूरी स्पेस प्राप्त है।
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पुलिस की गाड़ी आई और इसके बाद उन् होंने चिडिया घर को फोन कर दिया उनके चार आदमी एक पींजरा और एक डा. भी साथ आया।
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ऐसे कठिन दौर में इधर अनामिका के उपन्यास दस द्वारे का पींजरा और अरुण आदित्य के ' उत्तर वनवास' को पढ़कर ऐसा लगा कि सुरंग तो है, मगर अंधी सुरंग नहीं।
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ऐसे कठिन दौर में इधर अनामिका के उपन्यास दस द्वारे का पींजरा और अरुण आदित्य के ' उत्तर वनवास ' को पढ़कर ऐसा लगा कि सुरंग तो है, मगर अंधी सुरंग नहीं।
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कवि कथाकार अनामिका के दो उपन्यास ÷दस द्वारे का पींजरा ' और ÷तिनका तिनके पास' आगे पीछे इसी साल प्रकाशित हुए हैं, जिनमें पंडिता रमाबाई और ढेलाबाई का आख्यान बड़े फलक पर चित्रिात है।
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जहां ÷दस द्वारे का पींजरा ' को इतिहास की तरह पढ़ना पड़ता है और पठित तथा जीवन प्रत्यक्ष में फॉक दिखती है, वहां आगे पीछे जाकर भी ÷तिनका तिनके पास' एक पठनीय उपन्यास लगता है।