| 21. | दक्षिणी भारत की नामांकित जाति में सफ़ेद टोपी तथा गर्दन के पीछे का भाग गहरे रंग से आच्छादित होता है.
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| 22. | दस विदर के पीछे का भाग आवेग क्षेत्र है, जहाँ भिन्न भिन्न स्थानों की त्वचा से आवेग पहुँचा करते हैं।
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| 23. | विपरीत पीछे का भाग संकरा तथा आगे का भाग चैड़ा होने से सिंह मुख कहलाता है और यह दुकान शुभफलदायक होगी।
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| 24. | इसके दो भाग होते हैं जिनमें सम्मुख का भाग पतला और गोल है और पीछे का भाग स्थूल और चौड़ा है।
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| 25. | इस अंचल में कौंचा हाथ का वह अंग है, जिसमें हथेली के पीछे का भाग और कलाई, दोनों सम्मिलित हैं ।
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| 26. | इसके पीछे का भाग 2 मीटर लम्बा तथा 1. 5 मीटर चौड़ा है. पिछले पैर दक्षिण दिशा में दिखाई हैं.
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| 27. | इसके दो भाग होते हैं जिनमें सम्मुख का भाग पतला और गोल है और पीछे का भाग स्थूल और चौड़ा है।
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| 28. | 4. रोगी व्यक्ति को कुर्सी पर बैठाकर उसके पृष्ठा ग्रीवा (गर्दन के पीछे का भाग) क्षेत्र पर दबाव देना चाहिए।
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| 29. | भारत के चरम दक्षिण में पक्षी श्रीलंका की उप-प्रजातियों के समान होता है जिसमें टोपी तथा पीछे का भाग अधिक सलेटी होता है.
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| 30. | दुकान वर्गाकार या आयताकार हो, दुकान के पीछे का भाग अधिक चैड़ा तथा आगे का कम चैड़ा होने से यह गौमुखी कहलाता है।
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