लोगों को डराना, धमकाना, उन्हें विभिन्न तरीकों से पीड़ा देना, पुलिस की जबरदस्ती और अत्याचार, कई देशों में निरंकुश बढ़ रहा है.
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' अठारह पुराणों में व्यास जी के दो ही वचन प्रमुख हैं कि परोपकार करना ही पुण्य है तथा निर्दयता से दूसरे को पीड़ा देना ही पाप है।
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हिंदी में भावार्थ-डंडे से पीटकर किसी पीड़ा देना, मदिरादि दुर्गंधित पदार्थों को सूंघना, कुटिलता करना तथा पुरुष से मैथुन करना जैसे पाप मनुष्य जाति के लिये भयंकर हैं।
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संस्कृत में एक श्लोक है जिसका अर्थ इस प्रकार है-“ अठारह पुराणों में व्यास के दो वचन हैं परोपकार पुण्य है और दूसरे को पीड़ा देना पाप है ”.
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लोगों को पकड़ कर उन्हें पीड़ा देना और सताना, बिना मुकदमे के लोगों को पकड़ कर रखना, उन्हें जान से मार देना आदि, जम्मु कश्मीर, उत्तर पूर्व और नक्सलाईट क्षेत्रों में आम बातें हैं...
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यही बुद्धि संगत भी है और तर्क संगत भी. पंडित रवींद्र बाजपेई जी ने कहा-” दिल्ली में मासूम बच्ची के साथ दरिंदगी करने वाले नराधम को भी वैसी ही पीड़ा देना चाहिए।
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तुम मेरी स्वत्वाहूता पीड़ा हो मैने अपनी एक वन्दना में माँ सरस्वती से प्रार्थना की थी ‘ … माँ मुझमे तुम पीड़ा देना ' माँ ने उसी आर्शीवाद के रूप में तुम्हें मेरी आजीवन ‘
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यह प्रश्न कई लोगों के मस्तिष्क में रहता है, और बार-बार पूछा जाता है, वैसे लोग जो पहली बार अपनी कुँवारी गर्लफ्रेण्ड के साथ सहवास करने जा रहे हैं और उसे यथासम्भव अल्प पीड़ा देना चाहते हैं।
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लोगों को पकड़ कर उन्हें पीड़ा देना और सताना, बिना मुकदमे के लोगों को पकड़ कर रखना, उन्हें जान से मार देना आदि, जम्मु कश्मीर, उत्तर पूर्व और नक्सलाईट क्षेत्रों में आम बातें हैं...
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जितने मनुष्य से भिन्न जातिस्थ प्राणी हैं उनमें दो प्रकार का स्वभाव है-बलवान से डरना, निर्बल को डराना और पीड़ा देना अर्थात् दूसरे का प्राण तक निकाल के अपना मतलब साध लेना, ऐसा देखने में आता है ।