| 21. | उससे कम महत्त्वपूर्ण, केवल आर्थिक मामलों से जुड़े संगठनों को श्रेणि, पूग, व्रात, गण आदि नामों से पुकारा जाता था.
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| 22. | आचार्य काणे ने अपने वृहद् ग्रंथ ‘धर्मशास्त्र का इतिहास ' में उल्लेख किया है कि व्रात्य की भांति पूग भी विभिन्न जातियों से आए हुए लोग थे.
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| 23. | वैदिक साहित्य में श्रेणि, पूग अथवा नैगम जैसे शब्द अनेक स्थानों पर आए हैं, जहां उनका सामान्य अर्थ दल अथवा संगठन से ही है.
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| 24. | गण, पूग, पाणि, व्रात्य, संघ, निगम अथवा नैगम, श्रेणि जैसे कई नाम थे, जिनमें श्रेणि सर्वाधिक प्रचलित संज्ञा थी.
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| 25. | पूग, समवाय, कम्पनी ; व्यापारियों या व्यवसायियों का वह समूह या दल या संस्था जो एक साथ मिलकर कोई व्यापार या व्यवसाय करता हो 11.
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| 26. | पूग आचार्य काणे ने अपने वृहद् ग्रंथ ‘ धर्मशास्त्र का इतिहास ' में उल्लेख किया है कि व्रात्य की भांति पूग भी विभिन्न जातियों से आए हुए लोग थे.
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| 27. | पूग आचार्य काणे ने अपने वृहद् ग्रंथ ‘ धर्मशास्त्र का इतिहास ' में उल्लेख किया है कि व्रात्य की भांति पूग भी विभिन्न जातियों से आए हुए लोग थे.
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| 28. | उनके अनुसार-‘ व्रात्य एवं पूग एक ही नगर अथवा गांव के निवासियों के सामान्यतः एक ही व्यवसाय में लगे, समान आर्थिक हितों के लिए गठित समूह थे.
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| 29. | पाणिनि ने व्रात और पूग इन संज्ञाओं से बताया है कि इनमें से बहुत से कबीले उत्सेधजीवी या लूटपाट करके जीवन बिताते थे जो आज भी वहाँ के जीवन की सच्चाई है।
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| 30. | पाणिनि ने व्रात और पूग इन संज्ञाओं से बताया है कि इनमें से बहुत से कबीले उत्सेधजीवी या लूटपाट करके जीवन बिताते थे जो आज भी वहाँ के जीवन की सच्चाई है।
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