दैवज्ञ के आज्ञानुसार पृच्छक मन ही मन प्रश्न का चिंतन करते हुए शुभत्व की कामना से उस अंगूठी को निष्ठापूर्वक कुंडली चक्र के जिस खाने में रखता है उस खाने के अंक वाली राशि को आरूढ़ लग्न मानकर प्रश्न फल का विचार किया जाता है।
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सिद्धि / कार्य नाश: प्रश्न फल कथन की अंकों वाली यह विधि भी ठीक है जिसमें पृच्छक से 1 से 108 तक के अंकों के मध्य की कोई भी संख्या पूछी जाती है और वह जो संख्या बतलाता है उसमें 12 का भागकर बची हुई संख्या अर्थात शेष के आधार पर इस प्रकार फलकथन किया जाता है।
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ज्योतिषी कुंडली चक्र की धूप, दीप और अगरबŸाी दिखाते हुए पुष्प, अक्षत, कुमकुम आदि से पूजा कर अपने पास रखी हुई सोने की अंगूठी गुरु, गणेश अथवा अपने इष्ट देव के मंत्र से अभिमंत्रित कर पृच्छक को इस हिदायत के साथ देता है कि वह उसे अपने मस्तक का स्पर्श कराते हुए, कुंडली चक्र को प्रणाम करके उसके किसी भी खंड में श्रद्धा भक्ति के साथ रख दे।