इसके परे शक्तिशाली पेशीय पेषणी, बुध्न ग्रंथियों से अस्तरित होती है, और, कुछ प्रजातियों में, आहार को पीसने में मदद के लिए जंतु द्वारा निगले हुए पत्थर शामिल होते हैं.
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इसके परे शक्तिशाली पेशीय पेषणी, बुध्न ग्रंथियों से अस्तरित होती है, और, कुछ प्रजातियों में, आहार को पीसने में मदद के लिए जंतु द्वारा निगले हुए पत्थर शामिल होते हैं.
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ये किण्वज अन्नग्रह (Crop) में पहुँच जाते हैं जहाँ अधिकतर पाचन होता है, केवल तरल पदार्थ ही पेषणी द्वारा मध्यांत्र में पहुँचते हैं जहाँ केवल अवशोषण होता है।
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जब मथना पूर्ण हो जाता है, तो पेषणी की दीवारों की ग्रंथियां इस गाढ़े लसदार मिश्रण में एंजाइम मिलाती है जो कार्बनिक पदार्थों के विभाजन में सहायक होते हैं.
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सबको ज्ञात है कि भोजन सामग्री या रसोई बनाने के लिए गृहस्थाश्रमियों को पांच प्रकार की क्रियाएं करनी पड़ती हैं, कंडणी (पीसना), पेषणी (दलना), उदकुंभी (बर्तन मलना), मार्जनी (मांजना और धोना) और चूली (चूल्हा सुलगाना).
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कुल पदार्थ मिल जाने पर इस पायस को एक दिन तक अलग रख दिया जाता है और फिर लगभग 1 / 2 प्रतिशत सुगंध मिलाकर श्लेषाभ पेषणी (कोलायड मिल) में दो एक बार पीसकर शीशियों में भर दिया जाता है।
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कुल पदार्थ मिल जाने पर इस पायस को एक दिन तक अलग रख दिया जाता है और फिर लगभग 1 / 2 प्रतिशत सुगंध मिलाकर श्लेषाभ पेषणी (कोलायड मिल) में दो एक बार पीसकर शीशियों में भर दिया जाता है।
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आग में भूना हुआ, कजंगसताये, मसालों से लपटे हुई गोमांस व मुर्गी, मुर्गे की पेषणी व ओझड़ी और हिरण जिसे मूँगफली की तीखी चटनी व खीरा, कच्ची प्याज और केटुपट (चावल) जैसे व्यंजनों के साथ परोसा जाता है।
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कुल पदार्थ मिल जाने पर इस पायस को एक दिन तक अलग रख दिया जाता है और फिर लगभग 1 / 2 प्रतिशत सुगंध मिलाकर श्लेषाभ पेषणी (कोलायड मिल) में दो एक बार पीसकर शीशियों में भर दिया जाता है।
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अतः वे भिक्षा-उपार्जन के पूर्ण अधिकारी थे ।दूसरा दृष्टिकोणपंचसूना-(पाँच पाप और उनका प्रायश्चित)-सब को यह ज्ञात है कि भोजन सामग्री या रसोई बनाने के लिये गृहस्थाश्रमियों को पाँच प्रकार की क्रयाएँ करनी पड़ती है-कंडणी (पीसना) पेषणी (दलना) उदकुंभी (बर्तन मलना) मार्जनी (माँजना और धोना) चूली (चूल्हा सुलगाना)इन क्रियाओं के परिणामस्वरुप अनेक कीटाणुओं और जीवों का नाश होता है और इस प्रकार गृहस्थाश्रमियों को पाप लगता है ।