मुनिश्री प्रकर्ष सागर जी आचार्य श्री पुष्पदंत सागर जी की शिष्य परंपरा के अनमोल रत्न हैं जिनके दर्शन रोहतक वासियों को लगभग आठ वर्षों के बाद प्राप्त हुए!
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नारा लेखन प्रतियोगिता में विश्वेश विद्या विहार की छात्रा रक्षिता ने बाजी मारी जबकि इसी विद्यालय के छात्र प्रकर्ष दूसरे तथा एपीजे विद्यालय के प्रांजल तीसरे स्थान पर रहे।
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“जिनकी विद्या विवाद के लिए, धन अभिमान के लिए, बुद्धि का प्रकर्ष ठगने के लिए तथा उन्नति संसार के तिरस्कार के लिए है, उनके लिए प्रकाश भी निश्चय ही अंधकार है।
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हालांकि उन्नीसवीं शताब्दी को फ्रांसीसी काव्य आंदोलनों की शताब्दी माना जा सकता है, क्योंकि इस शताब्दी के शुरू में नवआभिजात्यवाद अपने प्रकर्ष पर था, जिसकी प्रतिक्रिया में स्वच्छंदतावाद का अभ्युदय हु आ.
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महाभारत युग में भी भगवान व्यास ने उपदेश देते वक्त यही कहा था कि अगर आपके पास साधन-सामग्री नहीं है तो रण में विजय आपको नहीं मिल सकती, प्रकर्ष मूलाय रणे जयश्री (किरातार्जुनीय काव्य).
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श्रीवसिष्ठजी ने कहाः राजकुमार, जैसे सागर में तरंग बार बार उत्पन्न होती है वैसे ही प्रचुर क्रियाशक्ति से सम्पन्न ब्रह्मा अपने पूर्वजन्म की विद्या, कर्म और वासनाओं के प्रकर्ष से परम ब्रह्म में उत्पन्न हुए।
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श्री दिगम्बर जैन समाज द्वारा प्रेरणा दिव्य सत्संग महोत्सव में मुनि श्री प्रकर्ष सागर जी महाराज ने अपनी वर्षा वाणी करते हुए कहा कि मनुष्य चाहे जैसा भी हो उसे अपने कमरें का सदैव ध्यान रखना चाहिए।
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(सूत्रकृतांग) “ जिनकी विद्या विवाद के लिए, धन अभिमान के लिए, बुद्धि का प्रकर्ष ठगने के लिए तथा उन्नति संसार के तिरस्कार के लिए है, उनके लिए प्रकाश भी निश्चय ही अंधकार है।
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मुनिश्री प्रकर्ष सागर जी आचार्य श्री पुष्पदंत सागर जी मुनिश्री ने अपने प्रवचन मे कहा कि आज महावीर का जन्म दिवस ही नहीं वरन “ पिता सिद्धार्थ ” व “ माता त्रिशला ” का भी जन्म दिवस है!
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उसका मनःपूत व्यक्तित्व अपने पूर्ण प्रकर्ष में महाभारत युद्ध के अंत में अश्वत्थामा को क्षमा करने के प्रसंग में उभर आया है जहाँ वह मानुषी की लौकिक भूमिका को अतिक्रांत कर एक अलौकिक भूमिका पर स्वयं को अधिष्ठित करती है।