इन समकालीन प्रवृतियों का भारतीय संस्कृति एवं गाँवों पर सम्मिलित प्रभाव अंत में क्या रूप लेगा यह भविष्य के गर्भ में है परंतु महात्मा गाँधी द्वारा प्रस्तुत हिन्द स्वराज का गाँव केन्द्रित सभ्यतामूलक विमर्श अपने प्रकाशन काल की तुलना में आज ज्यादा प्रासंगिक हो गया है।
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मैंने अपनी पिछली पोस् ट में इस तरह जिक्र किया था-' ' यही कारण है कि ' सत्यार्थ प्रकाश ', अपने प्रकाशन काल में धर्मों के तार्किक विश्लेषण का महत्वपूर्ण ग्रंथ, आज कथित उदारता और विकास के दौर में खतरनाक विस्फोटक सामग्री जैसा माना जा सकता है।
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प्रोफेसर शैलेश जैदी ने ” प्रेमचंद की उपन्यास यात्रा: नव मूल्यांकन शीर्षक पुस्तक (प्रकाशन काल 1978) के परिशिष्ट भाग में अमृत राय और मदन गोपाल द्वारा संपादित चिट्ठी-पत्री की अनेक ऐसी त्रुटियों का रेखांकन किया है, किंतु सम्पादकों ने पुस्तक के नए संस्करण आने पर भी इस ओर ध्यान नहीं दिया.