नोट: हम पुराणों या भागवतादि को शत-प्रति-शत प्रामाणिक अथवा ग़लत नहीं बताते क् योंकि इनमें जो बातें वैदिक सिद्धान् तानुसार लिखी हैं, वे अवश् य ग्रहणीय और माननीय हैं, परन् तु इनमें जो बातें काल् पनिक, मनघड़त, वेद विरुद्ध या प्रकृति नियम के विरुद्ध तथा पाखण् डों (झूठ, कपट, और स् वार्थ) से ओत-प्रोत हैं वे सब अप्रामाणित होने से अमाननीय हैं जिसे एक अल् प-बुद्धि रखने वाला व् यक् ित भी मान नहीं सकता।
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सृजन अभी होने को था की प्रलय प्रखर हो बरस गया जिसने सागर को जन्म दिया खुद दो बूंदों को तरस गया प्रकृति नियम से वशीभूत है हर उदभव पर विनाश छिपा हर जीवन के मनस पटल पर है मृत्यु का श्लोक लिखा यदि जन्म लिया तो सृजन करो इस धरती में श्रृंगार भरो पीड़ा से प्राण निकलते हैं इस धरती के, सब त्रास हरो है समय बहुत ही अल्प कल्प का तरु न सदा हरा रहता जिसने क्षण, कण का मान न माना उसका भाग्य न कभी खरा रहता