अब जैसे शील-संकोच और सलज्जता के लिहाज से नायिकाओं के तीन उपभेद हैं-मुग्धा, मध्या और प्रगल्भा!
22.
विद्यापति की राधा ईषददि्भन्नयौवना हैं, जयदेव की राधा पूर्णविलासवती, प्रगल्भा और चण्डीदास की राधा उन्मादमयी, मोम की पुतली।
23.
रूप गोस्वामी द्वारा उल्लिखित मुग्धा के छ:, मध्या के चार तथा प्रगल्भा के सात प्रभेद विश्वनाथ कृत प्रभेदों से मिलते जुलते हैं।
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-क्या राधा प्रगल्भा नहीं है--राधा प्रगल्भा नायिका है...परन्तु प्रगल्भा का अर्थ..रति आसन्ना नहीं होता....नायिका व रति भावा व रति आसन्ना में बहुत अंतर है..
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-क्या राधा प्रगल्भा नहीं है--राधा प्रगल्भा नायिका है...परन्तु प्रगल्भा का अर्थ..रति आसन्ना नहीं होता....नायिका व रति भावा व रति आसन्ना में बहुत अंतर है..
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-क्या राधा प्रगल्भा नहीं है--राधा प्रगल्भा नायिका है...परन्तु प्रगल्भा का अर्थ..रति आसन्ना नहीं होता....नायिका व रति भावा व रति आसन्ना में बहुत अंतर है..
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विश्वनाथ ने मुग्धा के पाँच, मध्या के पाँच, तथा प्रगल्भा के छह प्रभेदों का उल्लेख किया है, किंतु नायिका की संख्यागणना में इन प्रभेदों को संमिलित नहीं किया।
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गंधर्वी के अंतर्गत, अर्थात् साढ़े दस से साढ़े चौबीस वर्ष तक की अवस्था के बीच में, मुग्धा, मध्या तथा प्रगल्भा के 13 प्रभेदों में से प्रत्येक की आयुसीमा निर्धारित की गई है।
29.
विदिशा की वेत्रवती किशोरी होते हुए भी प्रगल्भा है. मेघ झपट कर उसके स्वादिष्ट मुख का पान करता है और उसकी भौंहें चंचल हो करलीला-भंगिमा करने लगती है निविंध्या विरहकातर प्रोषितपतिका है और उसका रूप तीरके झरे पीले पातों के कारण और पांडुरवर्णी हो उठा है.
30.
नायक के प्रति जिस नायिका का व्यवहार सलज्ज और संकोचशील होता है उसे मुग्धा कहते हैं और उत्तरोत्तर बढ़ती घनिष्ठता से जब यह संकोच और लज्जा कमतर होने लगती है तो वह मध्या बन जाती है और पूर्णयौवना नायिका जब नायक के साथ निःसंकोच व्यवहार करने लगती है तो वह प्रगल्भा बन जाती है!