गांधीजी के प्रति राष्ट्रवादियों का क्षोभ फिर भी समझा जा सकता है मगर उससे दो कदम आगे बढकर कम्युनिस्ट खेमे के कुछ प्रचारवादी आजकल ऐसा भ्रम फैलाने में लगे हुए हैं जैसे कि भगतसिंह कम्युनिस्ट थे।
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गांधीजी के प्रति राष्ट्रवादियों का क्षोभ फिर भी समझा जा सकता है मगर उससे दो कदम आगे बढकर कम्युनिस्ट खेमे के कुछ प्रचारवादी आजकल ऐसा भ्रम फैलाने में लगे हुए हैं जैसे कि भगतसिंह कम्युनिस्ट थे।
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गांधीजी के प्रति राष्ट्रवादियों का क्षोभ फिर भी समझा जा सकता है मगर उससे दो कदम आगे बढकर कम्युनिस्ट खेमे के कुछ प्रचारवादी आजकल ऐसा भ्रम फैलाने में लगे हुए हैं जैसे कि भगतसिंह कम्युनिस्ट थे।
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कुछ प्रचारवादी प्रोटेस्टेंट मानते हैं कि ग्रेट कमीशन की पूर्ति के लिये, प्रत्येक ईसाई को अनिवार्य रूप से अपने संपर्क में आने वाले लगभग प्रत्येक व्यक्ति को धर्मांतरित करने के प्रयास के लिये तैयार रहना चाहिये.
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लेकिन कुछ मिसन सहित के प्रचारवादी धर्म के प्रादुर्भाव इस दुनिया के लिए बहुत बडी दुर्घटना साबित हुए, क्योकी उनका उद्देश्य सिर्फ अपने धर्मावलम्बीयो की जनसंख्या बढा कर अपने साम्राज्यवादी उद्देश्य को पुरा करना भर रह गया है।
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प्रतिष्ठित डौक्यूमेण्ट्री फ़िल्मकार और एफ़ टी आई आई, पुणे में निर्देशन के प्राध्यापक अजय रैना इसे तो मानते हैं कि पिछले बीस सालों में डौक्यूमेण्ट्री के परिदृश्य में पुरानी प्रचारवादी फ़िल्मों से इतर निजी जीवन पर केन्दित, काव्यात्मक और अमूर्त शैलियों का विकास हुआ है, लेकिन उनका कहना है कि योरोप व अमरीका में ये कलारूप पहले से ही विकसित हो चुके थे।
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प्रतिष्ठित डौक्यूमेण्ट्री फ़िल्मकार और एफ़ टी आई आई, पुणे में निर्देशन के प्राध्यापक अजय रैना इसे तो मानते हैं कि पिछले बीस सालों में डौक्यूमेण्ट्री के परिदृश्य में पुरानी प्रचारवादी फ़िल्मों से इतर निजी जीवन पर केन्दित, काव्यात्मक और अमूर्त शैलियों का विकास हुआ है, लेकिन उनका कहना है कि योरोप व अमरीका में ये कलारूप पहले से ही विकसित हो चुके थे।
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अतः यदि हमें स्वच्छ पत्रकारिता को विकसित करना है तो पत्रकारिता के क्षेत्र में हुई अनधिकृत घुसपैठ को समाप्त करना होगा, उसे जीवन मूल्यों से जोड़ना होगा, उसे आचरणिक कर्मों का प्रतीक बनाना होगा और प्रचारवादी मूल्यों को पीछे धकेल कर पत्रकारिता को जीवन, समाज, संस्कृति और कला का स्वच्छ दर्पण बनाना होगा, पत्रकारिता के क्षेत्र में कार्यरत व्यक्तियों को अतीत से शिक्षा लेकर वर्तमान को समेटते हुए भविष्य का दिशानिर्देशन भी करना चाहिए ।
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अतः यदि हमें स्वच्छ पत्रकारिता को विकसित करना है तो पत्रकारिता के क्षेत्र में हुई अनधिकृत घुसपैठ को समाप्त करना होगा, उसे जीवन मूल्यों से जोड़ना होगा, उसे आचरणिक कर्मों का प्रतीक बनाना होगा और प्रचारवादी मूल्यों को पीछे धकेल कर पत्रकारिता को जीवन, समाज, संस्कृति और कला का स्वच्छ दर्पण बनाना होगा, पत्रकारिता के क्षेत्र में कार्यरत व्यक्तियों को अतीत से शिक्षा लेकर वर्तमान को समेटते हुए भविष्य का दिशानिर्देशन भी करना चाहिए ।
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अतः यदि हमें स्वच्छ पत्रकारिता को विकसित करना है तो पत्रकारिता के क्षेत्र में हुई अनधिकृत घुसपैठ को समाप्त करना होगा, उसे जीवन मूल्यों से जोड़ना होगा, उसे आचरणिक कर्मों का प्रतीक बनाना होगा और प्रचारवादी मूल्यों को पीछे धकेल कर पत्रकारिता को जीवन, समाज, संस्कृति और कला का स्वच्छ दर्पण बनाना होगा, पत्रकारिता के क्षेत्र में कार्यरत व्यक्तियों को अतीत से शिक्षा लेकर वर्तमान को समेटते हुए भविष्य का दिशानिर्देशन भी करना चाहिए ।